वर्षा
प्रथम बूंद वर्षा की पावन। शीतल कर गयी धरती अम्बर को। सूखते प्राण को राहत मिली। तपिश क्षण भर के लिए उड़ गयी।सूखें प्राण तृप्त हो उठे।झुलसती गर्मी से राहत मिली। मौसम में खुमार आया। आषाढ़ के पुनर्वसु नक्षत्र में झमाझम बारिश सुख तृप्ति की परिचायक है। सूखे धरा को तृप्त कर गयी। चारों ओर सोंधी सुवास फैल गयी।आओं वर्षा रानी! आज तुम्हारा हम आलिंगन करें। अभिनन्दन करें तुमकों हे! ऋतुओं की रानी। तुम्हारें बिना सब सूना,सूखा। धरती अम्बर तक फैली है। तुम्हारी महिमा, तुमसे है सावन की हरियाली, तुमसे है धरती की हरीतिमा। तुम्हीं के आने से जग में फैलती है सरसता,सम्पन्नता! हे वर्षा रानी तुम्हारा हम अभिसार करें, अभिनन्दन करें। अन्नदाता के प्राणों में बसती हो तुम। तुमसे ही कृषि कार्य सम्पन्न होते। तुम ही अकाल को दूर भगाती। तुम नहीं तो भुखमरी फैल जाती है। तुम्हीं किसानों को देती खुशियाली।हे वर्षा रानी! आओ तुम्हारा अभिसार करें। अभिनन्दन करें।
रेखा सिन्हा।फ्लैट संख्या-४०५ शुभ सृष्टि विला। अभिमन्यु नगर, दानापुर कैंट। पटना-८०१५०३.मो०9631976439.

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