हमारे जीवन में ग्रह नक्षत्रों का महत्व
बीमारी या वायरस से कौन लोग ज्यादा जल्दी ग्रसित हो सकते है?
किसी भी बीमारी या वायरस रूपी बीमारी से ग्रसित होना और स्थिति बिगड़ जाना, यह तब ही संभव है जब लग्न लग्नेश की स्थिति अशुभ होगी साथ ही छठे भाव और भावेश का प्रभाव गोचर में, जन्मकुंडली में लग्न लग्नेश पर होगा और इन्ही छठे, आठवे और रोग पीड़ित लग्नेश से संबंधित ग्रह दशा चल रही होगी, साथ ही वायरस का कारक राहु होता है।अब आज जैसे कोरोना बीमारी चल रही है जो वायरस के द्वारा ही फैल रही है तो इसमे कुछ लोग ठीक हो जा रहे तो कुछ नही हो पाते और मृत्यु को प्राप्त हो गए, साथ ही लग्नेश का पाप ग्रसित होना इस वायरस की या किसी भी बीमारी की पकड़ में जल्दी ले लेगा।अब इस बात को और आसान तरह से समझने के लिए कुछ उदाहरणो का सहारा लेते है;- जैसे उदाहरण:- मेष लग्न की कुंडली अनुसार रोग बीमारी या वायरस, मेष लग्न में बुध रोग भाव (छठे भाव) का स्वामी होता है साथ ही मंगल लग्नेश होता है जीवन देंने वाला ग्रह।अब जैसे कि किसी मेष लग्न के जातक या जातिका की कुंडली मे लग्नेश मंगल और छठे भाव के स्वामी(रोग, बीमारी, वायरस) का संबंध बन जाये जैसे मंगल बुध का कोई संबंध बने इसमे अशुभ राहु केतु का प्रभाव भी लग्न पर या लग्नेश मंगल पर पड़े तब निश्चित ही जातक वायरस की चपेट में जल्दी आएगा या किसी भी बीमारी की चपेट में जल्दी आ जायेगा, क्योंकि आपके जीवन कारक ग्रह लग्नेश का संबंध रोग भाव स्वामी छठे से बन गया है।इसमे अशुभ राहु भी मंगल के साथ हो या लग्न पर प्रभाव डाले तो किसी भी बीमारी और इस आज के कोरोना वायरस जैसे रोग ग्रसित व्यक्ति जल्दी होगा, यदि ग्रह दशा भी छठे, भाव या लग्नेश की है और लग्नेश छठे भाव से संबंध में होकर अशुभ है तब ग्रहो की रोग/वायरस संबंधित दशा होने के कारण ऐसे जातको को बहुत सतर्क रहने की जरूर है।। #अब कोई भी जातक किसी बीमारी या वायरस से कब जल्दी ग्रसित नही होता?? जब लग्न लग्नेश की स्थिति बलवान हो, छठा भाव बलवान होगा और छठे भाव का कोई अशुभ प्रभाव लग्न लग्नेश पर नही पड़े साथ ही लग्न पर शुभ ग्रहों जैसे कि गुरु, शुक्र , शुभ बुध की दृष्टि होगी तब कोई भी वायरस या बीमारी जातक को आसानी से नही पकड़ सकती,क्योंकि जातक का जीवन और लगन लग्नेश शुभ ग्रहों के प्रभाव से सुरक्षित है, और कोई ऐसी स्थिति है जिसमे रोग या वायरस से ग्रसित होने की स्थिति या योग बना है तब ऐसे शुभ स्थिति लग्न लग्नेश और लगन लर शुभ ग्रहों के प्रभाव से जातक वायरस या बीमारी की पकड़ में आने पर भी बच जाएगा क्योंकि स्थिति शुभ प्रभाव में जातक की , जीवन संबंधी। अब एक अशुभ पॉइंट की बात कर लेते है, जिसमे मृत्यु संभव है। इसे भी एक उदाहरण से समझते है,जब लग्न लग्नेश, छठा भाव(रोगभाव) आपस मे संबंध्य में होंगे और इसमे आठवें भाव, या आठवे भाव के स्वामी(मृत्यु भाव)का भी प्रभाव होगा और ग्रह दशा छठे, आठवे या लग्न संबंधी चल रही होगी तब ऐसे इसी भी संक्रमण/वायरस या बीमारी से जातक की मृत्यु निश्चित हो जाएगी क्योंकि मृत्यु भावेश का प्रभाव है। उदाहरण_अनुसार, मिथुन लग्न की कुंडली मे बुध लग्नेश होता है अब बुध लग्नेश होकर छठे भाव(रोग/वायरस)के स्वामी मंगल के साथ बेठे साथ ही आठवे भाव का स्वामी यहाँ शनि बनता है और शनि मृत्यु कारक भी है तब शनि की दृष्टि या युति का प्रभाव लग्नेश बुध और छठे भवव के स्वामी मंगल पर हो, जैसे यहाँ मिथुन लग्न में लग्नेश बुध और छठे भाव का स्वामी मंगल दसवे भाव मे बेठे हो और शनि अष्टमेश होकर अष्टम भाव मे हो तब अष्टमेश शनि की तीसरी दृष्टि लग्नेश बुध और छठे भाव स्वामी मंगल पर होगी, जो जातक को बीमारी या वायरस से ग्रसित करके मृत्यु दे देगी।क्योंकि लग्नेश बुध यहां छठे भाव(रोग/बीमारी/वायरस) के स्वामी मंगल के साथ है साथ ही मृत्यु भाव अष्टमेश शनि के प्रभाव में भी है।। इस तरह यदि आपकी या आपके किसी भी पारिवारिक या संबंधी की कुंडली मे इस तरह के योग है और संबंधित ग्रह दशा है तो ज्यादा ही सावधान रहें।
विपरीत_राजयोग_से_आने_वाली_आय_कैसे_होगी
कई जातको की कुंडली मे विपरीत राजयोग होता है विपरीत राजयोग असामान्य तरह से फल देता है।जैसे पहले यह इंसान को कठिन परिस्थितियों से संघर्ष कराता है तब लाभ देता है साथ ही विपरीत राजयोग के माध्यम से आने वाली आय ज्यादा ही बड़ी मात्रा में आती है क्योंकि विपरीत राजयोग जरूर से ज्यादा देता है जब भी देता है क्योंकि विपरीत राजयोगों का केंद्र त्रिकोण भावो से संबंध नही होता और केंद्र त्रिकोण भावो से ही मकान, वाहन रोजगार सुख, भाग्य आदि देखा जाता है।लेकिन विपरीत राजयोग कोई बड़ी उपलब्धि या सफ़लता देकर , सिर्फ पद प्रतिष्ठा, धन, आर्थिक लाभ, उच्च आय समृद्धि देता है।क्योंकि बाकी जो अन्य मुख्य सांसारिक फल होते है वह केंद्र त्रिकोण भाव के स्वामियों से मिलते है।अब बात करते है विपरीत राजयोग के प्रभाव से आने वाली आय कैसी होगी और विपरीत राजयोग बनता कैसे है? विपरीत_राजयोग जब बनेगा जब कुंडली के 6वे भाव का स्वामी 8वे या 12वे भाव मे हो, 8वे भाव का स्वामी 6वे या 12वे भाव मे हो, 12वे भाव का स्वामी 6वे या 8वे भाव मे बलवान होकर बैठा हो और किसी केंद्र या त्रिकोण भाव का संबंध विपरीत राजयोग कारक ग्रह से न हो साथ ही विपरीत राजयोग कारक ग्रह अस्त, नीच, बहुत ज्यादा पीड़ित नही होना चाहिए ऐसी स्थिति में फल में दिक्क्क्त आ जायेगी।विपरीत राजयोग 1 या 2 या 3 एक साथ बन सकते है उसी ज्यादा नही, जैसे छठे भाव का स्वामी 12वे भाव मे हो तो 12वे भाव का स्वामी 8वे भाव मे हो, तब यह दो विपरीत राज्यीग बने।अब बात करते है आगे विपरीत राजयोग से आने वाली आय(Income)की।आय का घर कुंडली मे ग्यारहवा होता है जब 11वे भाव का स्वामी बहुत अच्छी स्थिति में हो , किसी राजयोग में हो, धन योग में हो या 11वे भाव मे कई ग्रह बलवान होकर बेठे हो, राजयोग बनाकर बेठे हो या ग्यारहवा भाव या भावेश किसी न किसी तरह बलवान और शुभ होगा तब विपरीत राजयोग के प्रभाव से बड़ी मात्रा में बहुत ज्यादा आय आएगी, मतलब सामान्य आय से अलग भी आय के अन्य स्रोत ऊपरी रूप से होंगे, इसके अलावा जातक कोई व्यापार करता होगा तब उसी व्यापार से बहुत बड़े बड़े मुनाफे होंगे जिससे आर्थिक लाभ अच्छा होगा और ज्यादा से ज्यादा आय आएगी, 11वे भाव मे या 11वे भाव के स्वामी के साथ कई ग्रह होने पर आय के रास्ते एक से ज्यादा और बड़े स्तर के होते ही है।जब विपरीत राजयोग कारक ग्रहो की दशा आएगी तब इस तरह का शुभ परिणाम जातक को प्राप्त होगा, साथ ही विपरीत राजयोग के प्रभाव से जातक की स्थिति भी काफी अच्छी रहेंगी।अब इसे ओर आसानी से समझने के के लिए कुछ उदाहरणों से समझते है:-
#प्रथम_उदाहरण:- मेष लग्न के अनुसार, मेष लग्न में बुध छठे और तीसरे भाव का स्वामी होता है अब बुध यहाँ 8वे भाव में अकेला बैठे तब यहाँ विपरीत राजयोग बनेगा, ठीक है अब विपरीत राजयोग बुध से बन गया है अब यहाँ 8वे भाव से बुध की पूर्ण दृष्टि दूसरे भाव(धन भाव)पर भी होगी जो आर्थिक स्थिति के लिए शुभ होगी अब यहाँ 11वे भाव की स्थिति ओर देखनी है यहाँ ग्यारहवे भाव में कुंभ राशि होने से ग्यारहवे भाव का स्वामी शनि होगा,अब शनि बलवान होकर शुभ स्थिति में बैठा हो साथ ही अपने मित्र ग्रहो के साथ हो तब यहाँ जब बुध की महादशा-अंतरदशा चलेगी उस समय काफी अच्छी स्थिति जातक की रहेगी आय के कई रास्ते बनेंगे विपरीत राजयोग के प्रभाव से, यही ग्यारहवे भाव पर अन्य ग्रहो का भी प्रभाव हो जैसे मेष लग्न में नवे भाव के स्वामी गुरु की दृष्टि पड़ती हो या गुरु बेठा हो ग्यारहवे भाव मे, तब ऐसे विपरीत राजयोग के प्रभाव आय में निरन्तर उन्नति, आर्थिक लाभ, व्यापार में लाभ, जिस भी कार्यक्षेत्र में जातक होगा वहाँ से आय निरन्तर कई गुनी होकर आती रहेगी।। #द्वितीय_उदाहरण:- कन्या लग्न में मंगल आठवे और तीसरे भाव का स्वामी बनता है अब मंगल यहाँ छठे या बारहवे भाव मे होगा तब विपरीत राजयोग बनाएगा इसके अलावा आठवे भाव मे भी हुआ तब भी अच्छा फल ही देगा विपरीत राजयोग की तरह।अब यहाँ 11वे भाव का स्वामी कन्या लग्न में चन्द्र होता है अब चन्द्र इस कुंडली मे बहुत अच्छी स्थिति में हो या ग्यारहवे भाव मे कई ग्रहो का प्रभाव हो जैसे चन्द्र गुरु के साथ हो या शुक्र के साथ हो आदि और मंगल जो कि विपरीत राजयोग बना रहा है इसकी दशा चल रही हो या आने वाली हो भविष्य में तब जातक को सोने पर सुहागा जैसे आय और लाभ प्राप्त होंगे।ग्यारहवे भाव पर या ग्यारहवे भाव के स्वामी पर जितने ज्यादा से ज्यादा ग्रहो का प्रभाव होगा उतना ही ज्यादा आय के रास्ते होंगे, यह स्थिति जो व्यापार करते है जातक उनके लिए बहुत लाभकारी होती है, ऐसे लोगो को लाख रुपये व्यापार में लाकर करोड़ो की आमदनी ऐसी स्थिति में होती है यही विपरीत राजयोग का फल है आर्थिक लाभ के संबंध में।। इस तरह विपरीत राजयोग में जितना ज्यादा ग्यारहवा भाव या भावेश अच्छी स्थिति में होगा उसी के अनुसार आय, लाभ व्यापारिक रूप से आर्थिक उन्नति आदि होगी और आय के रास्ते एक से ज्यादा होंगे ग्यारहवे भाव के साथ दूसरे भवव जो कि धन का है तब दूसरा भाव भी अच्छी स्थिति में हुआ तब ग्यारहवे भाव से आय बड़ी मात्रा में आती रहेगी और दूसरे भाव के अच्छे होने के प्रभाव से आय जुड़ती चली जायेगी, मतलब रुपया पैसा सुरक्षित होता जाएगा क्योंकि रूपया पैसा आ तो रहा है लेकिन उसका सुरक्षित रहना भी जरूरी है, जुड़ना भी जरूरी है जो कि दूसरे भाव के अधिकार में यह फल रहेगा।इस तरह विपरीत राजयोग , आय के कई रास्ते और अन्य तरह से आय और लाभ के मामलों में बड़ी उपलब्धियां देता है।
गुरुराहु_गुरुकेतु_संबंध_किस_तरह_के_फल_देगा
गुरु चांडाल योग मतलब गुरु के साथ राहु या केतु का बैठना गुरु चांडाल योग बनाता है।गुरु के ऊपर नैसर्गिक पाप ग्रहों राहु केतु जैसे ग्रहो असर होने से राहु में भी थोड़ा पापत्व आ जाता है।अब गुरु चांडाल योग राजयोग, शुभ फल भी दे सकता है और बेहद अशुभ फल भी।यह दब निर्भर करेगा गुरु के साथ राहु या केतु का संबंध बन किस तरह का रहा है।इसी पर बात करते है जिन जातको की कुंडली मे गुरु चांडाल योग है उन्हें क्या यह शुभ फल देगा या अशुभ, सामान्य भाषा मे कहू तो जब राहु केतु के साथ गुरु शुभ स्थिति में बेठा होगा साथ ही गुरु की धनु या मीन राशि पर राहु या केतु का अशुभ प्रभाव नही होगा तब यह शुभ फल देगा, इसके विपरीत अशुभ फल देगा।अब इसे और आसान तरह से समझने के लिए उदाहरणो से समझते है।।
#उदाहरण:- सिंह लग्न अनुसार, सिंह लग्न की कुंडली मे गुरु 5वे भाव का स्वामी होने से कारक बनकर कुंडली का शुभ हो जाता है, अब गुरु की स्थिति यहाँ राहु केतु के। साथ देखनी होगी शुभ है या अशुभ, जैसे गुरु 5वे भावाधिपति होकर चौथे भाव केंद्र स्थान में बैठे और गुरु के साथ राहु या केतु हो, तब यहाँ गुरु चांडाल योग के शुभ फल हल्के बिघ्नो के साथ मिलेंगे, यदि सौभाग्य से गुरु यहाँ कोई राजयोग बनाकर बेठा हो या धन स्वामी के साथ बेठा, जो। जैसे सिंह लग्न। में बुध धन/आय का स्वामी होता है। अब चौथे भाव मे गुरु के साथ बुध भी युति करके बैठेगा तब यह गुरु चांडाल योग ज्यादा लाभ देगा क्योंकि धन और लाभ अधिपति बुध भी यहाँ संबंध में आ गया है।ऐसी स्थिति में गुरु चांडाल यहाँ राजयोग देकर खूब आर्थिक लाभ, आदि देगा। #अब_गुरु_चंडाल योग के अशुभ फल पर आते है, गुरु के साथ जब राहु या केतु अशुभ अशुभ स्थिति में होगा तब बहुत ज्यादा दिक्क्क्त देगा, इसे भी उदाहरण से समझते है, #उदाहरण_अनुसार:- मेष लग्न अनुसार ही, अब यहां गुरू 5वे भाव मे सिंह राशि का होकर बैठेगा और गुरु के साथ ही राहु या केतु की युति होगी तब यहाँ गुरु चांडाल योग नुकसान देगा क्योंकि यहां सिंह राशि के 5वे भाव मे गुरु के साथ राहु या केतु की दृष्टि गुरु के 9वे भाव को भी पीड़ित करेगी जो भाग्य के लिए और गुरु संबंधी फल के लिए नुकसानदेह है क्योंकि ऐसी स्थिति में 5वे भाव मे बैठे हुए गुरु के साथ राहु या केतु की दृष्टि गुरु के 9वे भाव पर भी होगी।ऐसी स्थिति में गुरु भी और गुरु का 9वा भाव भी पीड़ित होने से गुरु चांडाल योग इस स्थिति का सिर्फ दिक्क्क्त ही देगा। गुरु के साथ राहु या केतु का संबंध किस स्थित्ति में है, क्या राजयोग में है, राजयोग भंग की स्थिति में है आदि उसी तरह से यह गुरु चांडाल योग लाभ या हानि कारक फल देगा साथ ही गुरु चांडाल योग एक अशुभ योग है लेकिन यह शुभ स्थिति में कुंडली मे यदि बन रहा हो तब यहाँ गुरु राहु केतु उपाय करके इससे बहुत ज्यादा लाभ लिया जा सकता है क्योंकि राहु केतु आकस्मिक लाभ के कारक ग्रह है।इस तरह निर्भर करेगा किस स्थिति में यह कुंडली मे बना हुआ है उसी अनुसार यह फल देगा।
⚜️कुंडली में बनने वाले कुछ ऐसे योग होते हैं जो जीवन को बदल देने का सामर्थ्य रखते हैं। इनमें कुछ योग राजयोग कहलाते हैं जो जीवन में सफलता देते हैं, तो कुछ योग जीवन में असफलता और समस्याओं को जन्म देते हैं। इन्हें दुर्योग या अशुभ योग अथवा दोष कहा जाता है ।
⚜️वैदिक ज्योतिष में ग्रहों और नक्षत्रों के आधार पर अनेक प्रकार के संयोग देखने को मिलते हैं, जो व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने की सामर्थ्य रखते हैं। अच्छे योगों के बारे में आपने सदैव पढ़ा होगा। आज हम आपको कुछ ऐसे विशेष ग्रह योगों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें ज्योतिष शास्त्र में अशुभ योगों में गिना जाता है और, किसी व्यक्ति की कुंडली में इनकी उपस्थिति उसके जीवन को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। व्यक्ति के जीवन में अनेक समस्याएं उसे पीड़ित करती हैं।
आइए जानते हैं क्या है वैदिक ज्योतिष में उपस्थित ऐसे पाँच सबसे खतरनाक योग, जो किसी भी व्यक्ति के जीवन में समस्याओं का अंबार लगा देते हैं। साथ ही जानेंगे उन योगों का आप के जीवन पर प्रभाव.
केमद्रुम_योग__
वैदिक ज्योतिष के अनुसार केमद्रुम दोष चंद्रमा की विशेष स्थिति के कारण निर्मित होता है। जन्म कुंडली में चंद्र जिस भाव अथवा राशि में स्थित होता है, उससे दूसरे और बारहवें भाव में सूर्य के अतिरिक्त कोई भी ग्रह न हो अर्थात चंद्रमा जिस राशि में हो उससे दूसरे और बारहवें (दोनों) भाव में कोई भी ग्रह उपस्थित ना हो तो केमद्रुम दोष का निर्माण होता है। यदि इन भावों में राहु अथवा केतु में से कोई भी ग्रह स्थित हो तो उनकी उपस्थिति होने से भी केमद्रुम दोष माना जाएगा।
⚜️वराहमिहिर ने अपने मुख्य ग्रंथ #बृहद्जातक में तथा #मंत्रेश्वर_महाराज ने भी #केमद्रुम_योग के बारे में बहुत कुछ बताया है। उनके अनुसार इस योग का फल यह है कि, व्यक्ति मलिन, दुखी, निर्धन और दूसरों के अधीन काम करने वाला होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि यदि किसी की कुंडली में केमद्रुम दोष विद्यमान हो, तो भले ही वह राजा के घर में जन्मा हो, उसके जीवन में कठिनाइयाँ और समस्याएं आती रहती हैं। यह योग जीवन में गरीबी, कठिनाइयाँ, संघर्ष और मानसिक तनाव देता है। ऐसा व्यक्ति संघर्षों का सामना करते हुए बड़ा होता है।
चांडाल_दोष
चांडाल योग किसी भी कुंडली में तब निर्मित होता है, जब किसी एक राशि अथवा भाव में बृहस्पति और राहु एक साथ स्थित होते हैं, या कुंडली में इनका एक दूसरे से किसी भी प्रकार से संबंध स्थापित होता है। इन दोनों का संयोग गुरु चांडाल योग या चांडाल दोष को जन्म देता है, जो कि कुंडली में एक बहुत बड़ा कुयोग माना जाता है।
गुरु_चांडाल योग का प्रभाव काफी व्यापक होता है। यह अपना प्रभाव मुख्य रूप से चेतना और ज्ञान पर डालता है, जिससे व्यक्ति के व्यवहार में नकारात्मकता आती है और वह असफलताओं से घिर जाता है।
इस योग के कारण जीवन में अनेक प्रकार की सुख-सुविधाओं में तथा जीवन में आगे बढ़ने में परेशानियां उठानी पड़ती हैं। इस योग से प्रभावित जातक काफी अधिक भौतिकतावादी होता है, और वह अपने जीवन में नकारात्मकता की ओर बढ़ता है। वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, और धन कमाने की तीव्र इच्छा रखता है, जिससे सही और गलत में भेद करना उसे पसंद नहीं आता। ऐसे में व्यक्ति चारित्रिक रूप से पतन का शिकार होता है तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में हिंसक एवं कट्टरवादी भी हो सकता है।
मांगलिक_दोष_
मांगलिक दोष को अधिकतर लोग पहचानते हैं क्योंकि यह वैवाहिक जीवन में समस्याओं को जन्म देने वाला योग माना जाता है। जब किसी जातक की कुंडली में मंगल प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, अथवा द्वादश भाव में स्थित होता है तब वो मांगलिक दोष का निर्माण करता है।
इस योग की उपस्थिति से व्यक्ति का दांपत्य जीवन पीड़ित अवस्था में रहता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के विवाह में विलंब होता है, बात होकर अटक जाती है या रिश्ता टूट जाता है अथवा विवाह होने के बाद भी शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से दांपत्य जीवन के सुख का ह्रास होता है। आप अपनी व्यक्तिगत मंगल दोष निवारण आप हमारे माध्यम से भी यह पता कर सकते हैं कि आपकी कुंडली में ऐसा योग बन रहा है या नहीं और इसके प्रभाव को खत्म करने के लिए क्या उपाय करना चाहिए।
इस दोष का परिहार करने के लिए व्यक्ति की मांगलिक दोष की शांति कराई जाती है।
अंगारक_दोष__
वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष का निर्माण किसी भी कुंडली में उस स्थिति में होता है, जब एक ही भाव में मंगल ग्रह के साथ राहु अथवा केतु उपस्थित हों। इसके अलावा, यदि मंगल का दृष्टि सम्बन्ध भी राहु अथवा केतु से हो रहा हो तो भी इस योग का निर्माण हो सकता है। आमतौर पर अंगारक दोष को एक बुरा और अशुभ योग माना जाता है और इससे जीवन में समस्याओं की बढ़ोतरी होती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार अंगारक दोष बुरे योगों में सम्मिलित किया गया है। #अंगारक_दोष की प्रकृति से समझें तो अंगारे जैसा फल देने वाला योग बनता है। यह जिस भी भाव में बनता है, उस भाव के कारकत्वों को नष्ट करने की क्षमता रखता है।
इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन आते हैं, और उसमें गुस्से की अधिकता हो सकती है। यह योग व्यक्ति के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है और वह अपने क्रोध तथा दुर्घटना आदि के कारण समस्याओं को निमंत्रण देता है। मंगल को भाई का कारक कहा जाता है, इसलिए इस योग के प्रभाव से कई बार व्यक्ति की अपने भाइयों से नहीं बनती तथा दुर्घटना होने की संभावना रहती है। इस प्रकार के योग वाले व्यक्तियों पर शत्रुओं का प्रभाव भी अधिक पड़ता है और वे मानसिक तनाव में बने रहते हैं।
किसी योग्य विद्वान से अंगारक योग निवारण पूजा कराना सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि इससे ग्रह शांत हो जाते हैं और उनके नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं।
विष_योग
किसी भी जातक की कुंडली में विष योग तब निर्मित होता है जब कुंडली में शनि और चंद्रमा का दृश्य अथवा युति संबंध बनता है, चंद्रमा को अमृत समान माना जाता है जबकि चंद्रमा पर शनि की दृष्टि से विष योग का निर्माण कर देती है।
विष_योग के बारे में कहा गया है कि ऐसा जातक जीवन से निराश हो जाता है। निराशा तब आती है जब मनोमस्तिष्क सही ढंग से साथ नहीं देता, ज्ञान बाधित हो जाता है। तात्पर्य यह कि विष योग विचारशून्यता देता है। यह कुंडली के जिस भाव में निर्मित होता है उस भाव से संबंधित फलों को छीन कर देता है और उससे संबंधित रिश्तो में भी दरार आ सकती है व्यक्ति स्वयं को अकेला महसूस करता है और इस वजह से मानसिक तनाव और डिप्रेशन में भी जा सकता है ।
विष_योग के उपाय के लिए चंद्रमा और शनि के जाप करने चाहिए।
वृद्ध_अवस्था_कैसी_बीतेगी?
वृद्ध अवस्था एक ऐसी स्थिति होती है।जहाँ पहुचकर व्यक्ति अपनी कई जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है और अपने ऊपर मुख्य रूप से ध्यान देने लगता है।वृद्धि अवस्था का कारक शनि और वृद्ध अवस्था आने पर उस समय चलने वाली ग्रह दशाओ। पर निर्भर करता है क्योंकि ग्रहो की महादशा ही तय करती है आगे का जीवन कैसा रहेगा? जिस भी ग्रह की महादशा होगी उस ग्रह की स्थिति क्या और कैसी है उसी पर फल निर्भर करेगा?अब इसे उदाहरणों से समझते हैं। उदाहरण:- माना किसी जातक के वृद्ध अवस्था का समय शुरू हो गया हो तब उस समय सिर्फ और सिर्फ जिस भी ग्रह की महादशा चल रही होगी उसी पर फल निर्भर करेगा कि वृद्ध अवस्था कैसी कटेगी?इसके अलावा शनि की स्थिति जितनी ज्यादा अच्छी होगी वृद्ध अवस्था उतना बढ़िया बीतेगा।। उदाहरण_अनुसार:- किसी जातक या जातिका की मीन लग्न की कुंडल बने तब यहाँ एक तो वृद्ध अवस्था की उम्र में आने। वाली ग्रहो की महादशाएं अच्छी अवस्था मे होनी चाहिए साथ ही 5वे भाव और 5वे भाव का स्वामी और संतान कारक गुरु भी अच्छा होगा तब वृद्धअवस्था अच्छी व्ययतीत होती है क्योंकि 5वा भाव,भावेश और गुरु संतान है इसके अनुकूल होने से संतान सुख वृद्ध अवस्था मे मिलता है। मुख्य रूप से वृद्ध अवस्था के लिए वृद्ध अवस्था के समय आने वाली महादशाएं, और कही न कही वृद्ध अवस्था का कारक शनि अच्छा होगा तब वृद्ध अवस्था का समय अच्छा व्ययतीत होता है।
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