जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत को
हिंदू महासभा और आर एस एस
का न सिर्फ समर्थन ही था बल्कि
मुस्लिम लिंग के साथ था
सरकार मे भी शामिल
थी:मनोहर कुमार यादव
श्यामा प्रसाद मुखर्जी मुस्लिम लीग
की सरकार मे वितमंत्री थे
आजादी के पहले अंग्रेजी हुकूमत ने सबसे पहले स्थानीय निकाय का चुनाव प्रारंभ कराया , 1932 भारत में सम्प्रदायिक आधार पर चुनाव कराने के अंग्रेजी सरकार के निर्णय के बाद भारत में प्रांतीय चुनाव कराने का भी नियम अंग्रेजी हुकूमत ने बनाया था भारत शासन अधिनियम 1935 में प्रांतीय चुनाव के लिए विस्तार पूर्वक प्रावधान किया गया था जिसके तहत भारत में सबसे पहला प्रांतीय चुनाव धार्मिक आधार पर 1936 में शुरू होकर 1937 में संपन्न हुआ था । अनुसूचित जातियों के लिए हिन्दू धर्म के अन्तर्गत ही 1932 के गांधी- अम्बेडकर बिच हुए पुना पैक्ट के तहत सिटों मे आरक्षण प्राप्त था जिसके कारण हिन्दू महासभा और आरएसएस वाले नाराज थे।देश के 11 प्रांतों में से 8 में कांग्रेस की सरकार बनी थी और तीन प्रांतों में सबसे बड़े दल होने के बाद भी उसकी सरकार नहीं बनी थी और वहां पर मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा कि गठबंधन सरकार उन तीनों प्रांतों में बनी थी।
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध में अंग्रेज सरकार ने बिना भारतीय नेताओं से सलाह मशविरा किए भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया था जिसके कारण कांग्रेस पार्टी अंग्रेजी हुकूमत से काफी नाराज हुई और महात्मा गांधी के दबाव में कांग्रेस के सभी प्रांतों के मंत्री मंडल सामूहिक रूप से अंग्रेज गवर्नरों को इस्तीफा सौंप दिया जिसके कारण भी हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की गठबंधन को बल मिला और अंग्रेज सरकार फूट डालो और राज करो की नीति अपनाते हुए हिंदू महासभा और मुस्लिम लिंग के नेताओं को बढ़ावा देना भी शुरू किया। सबसे पहले 1939 में (NWFP)उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत (सरहदी सुबा ) मे मुस्लिम लिंग और हिंदू महासभा की गठबंधन की सरकार बनी , उस समय प्रात मे मुख्यमंत्री नही, प्रधानमंत्री होते थे। प्रधानमंत्री मुस्लिम लीग के औरंगजेब खान और हिंदू महासभा के मेहर चंद खन्ना वित्त मंत्री बने थे ।
1941 में बंगाल प्रांत में मुस्लिम लिंग , हिंदू महासभा तथा कृषक प्रजा पार्टी कि गठबंधन सरकार बनी थी हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने सरकार बनाने के लिए प्रगतिशील गठबंधन बनाया था इस सरकार के प्रधानमंत्री एक के फजलुल हक थे और वित्त मंत्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ।
श्री मुखर्जी उप मुख्य भी थे श्यामा प्रसाद मुखर्जी 12 दिसंबर 1941 से 20 नवंबर 1942 तक वित्त मंत्री थे तथा उप मुख्य भी बने रहे ज्ञातव्य हो कि मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में 1940 में मुस्लिम लीग ने अपने लाहौर अधिवेशन में अलग देश के रूप में पाकिस्तान का प्रस्ताव पारित किया था उसके बाद भी हिंदू महासभा के नेता मुस्लिम लिंग से गठबंधन कर सरकार बनाए थे ।
1943 में सिंध प्रांत में मुस्लिम लिंग और हिंदू महासभा की गठबंधन सरकार बनी थी प्रधानमंत्री मुस्लिम लिंग के जीएम हिदायतुल्ला और हिंदू महासभा के तीन मंत्री थे पहला राव साहब गोकलदास मेवालदास दूसरा डॉक्टर हेमंनदास आर वाधवन और तीसरा लोलू आर मतबानी ।
सिंध प्रांत ने 1943 में अलग पाकिस्तान देश का प्रस्ताव पारित किया था और हिंदू महासभा के मंत्री गण समर्थन में थे प्रस्ताव के बाद भी हिंदू महासभा के मंत्री गण सरकार में बने हुए थे हिंदू महासभा से ही आरएसएस निकली है हिंदू महासभा एक राजनीतिक दल थी और उससे अलग होकर आ एस एस ने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदू महासभा को मजबूत करने के लिए गोपनीय संगठन बनाकर मदद करना शुरू किया था आर एस एस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार 1915 में हिंदू महासभा के उपसभापति थे हिंदू महासभा के सर्वे सर्वा विनायक दामोदर सावरकर ने भी जिन्ना के दो राष्ट्र के प्रस्तावों का समर्थन किया था 30 दिसंबर 1937 को हिंदू महासभा के अध्यक्ष के रूप में विनायक दामोदर सावरकर ने दो राष्ट्र की बात के लिए अपना विचार दिया था और इसे हिंदुओं के हित में बताया था फिर 15 अगस्त 1943 के हिंदू महासभा के नागपुर अधिवेशन में सावरकर ने कहा था कि जिन्ना के दो राष्ट्र की सिद्धांत से मेरा कोई झगड़ा नहीं है हिंदू और मुस्लिम दोनों दो राष्ट्र हैं। मुस्लिम लिंग के साथ सरकार में शामिल होने के मुद्दे पर पूछे गए सवालों के जवाब में सावरकर यही कहते थे कि मुस्लिम लिंग की सरकार में शामिल होना हिंदू महासभा के लिए उपलब्धि है और इससे हम हिंदू हितों की रक्षा करते हैं। हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 26 जुलाई 1942 को अंग्रेज गवर्नर को वितमंत्री कि हैसियत से पत्र लिखकर यह भरोसा दिलाया था कि वे और हिंदू महासभा उनके साथ है ।
उस समय कांग्रेस का भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों ही अंग्रेज सरकार को समर्थन दे रहे थे अपने पत्र में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अंग्रेज गवर्नर को लिखा कि प्रश्न यह है कि बंगाल में इस भारत छोड़ो आंदोलन से कैसे निपटा जाए ?
प्रांत का प्रशासन इस तरह चलाया जाना चाहिए कि कांग्रेस द्वारा हर संभव कोशिश करने के बाद भी यह आंदोलन प्रांत में जोर पकड़ने में असफल रहे हम लोगों विशेषकर जिम्मेदार मंत्रियों को चाहिए की जनता को यह समझाएं कि कांग्रेस ने जिस स्वतंत्रता को हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू किया है वह स्वतंत्रता जनप्रतिनिधियों को पहले से ही हासिल है भारत वासियों को अंग्रेजों पर भरोसा करना चाहिए बतौर गवर्नर आप प्रांत के संवैधानिक प्रमुख हैं और पूरी तरह से अपने मंत्रियों के परामर्श से आप काम करेंगे ।
आजादी के बाद 1947 में बनी स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सरदार बल्लभ भाई पटेल के दबाव में जवाहरलाल नेहरू ने मंत्री बनाया था श्यामा प्रसाद मुखर्जी उद्योग एवं आपूर्ति मंत्रालय के मंत्री थे ।
30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हिंदू महासभा एवं आर एस एस के नेताओं द्वारा किए जाने के बाद हिंदू महासभा जैसे राजनीतिक दल के लिए विकट परिस्थिति आ गई थी और बहुत ही कमजोर हो चली थी, हिन्दूमहासभा के नेता गिरफ्तारी के भय से अंडरग्राउंड हो गए थे।
19 अप्रैल 1950 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया और 21 अक्टूबर 1951 को जनसंघ की स्थापना की , मुखर्जी जन संघ के अध्यक्ष बने और 1952 के लोकसभा चुनाव में जन संघ को 3 सीटें मिली ।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35a के खिलाफ आंदोलन चलाना चाहते थे उस वक्त देश के मणिपुर मिजोरम नागालैंड कि तरह जम्मू कश्मीर में भी इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती थी 8 मई 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर में बिना परमिट के प्रवेश कर गए जिसके कारण 11 मई को उन्हें गिरफ्तार किया गया और 23 जून 1953 को उनकी मृत्यु हो गई जो कि एक विवादित विषय बना हुआ है।
मनोहर कुमार यादव यह लेख, लेखक का अपना संकलन और विचार है।
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