स्वार्थ का नाम राजनीति
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चित्र को जूम करें और सत्य को जाने। |
सभी प्रिय बहन भाइयों को मेरी राम राम।
आम भाषा में राजनीति का शाब्दिक अर्थ है - राज्य को चलाने के लिए अर्थात राज्य व समाज की भलाई के लिए कैसी नीति अपनाई जाए ताकि राज्य सुदृढ़ हो सके और जनता की भलाई हो सके ( राजनीति की यही असली
व्याख्या है) परंतु हमारे महा स्वार्थी राजनेताओं ने निजी इच्छाओं व स्वार्थ की पूर्ति के लिए
छल- कपट व धोखा-धड़ी से कमाए गए धन के संचय को ही राजनीति का नाम दे दिया है। आतिशीजी को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते देख मुझे अपने जीवन की एक भूल याद आ गई जो बहुत ही कटु है सन 2011 में अन्ना हजारे ने दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन किया था। मोतीलाल गुप्त ने अपनी फैक्ट्री के 8 कर्मचारियों को लेकर अन्ना हजारे के इस आंदोलन में मंच के समीप एक टेंट लगाया था। जहां प्रतिदिन 2500 से अधिक लोगों को खाना दिया जाता था और लगभग 10,000 बिसलेरी की बोतले भी बांटी जाती थी । यह काम मैंने निस्वार्थ भाव से केवल इसीलिए किया था ताकि भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के आंदोलन में आने वाले देशभक्तों को
भोजन व पानी की कमी ना हो। उस समय अन्नाजी के मंच पर खड़े होकर केजरीवालजी चिल्ला-चिल्ला कर कहा करते थे - यदि मैं सत्ता में आया तो मैं आम आदमी की तरह तीन कमरों के फ्लैट में रहूंगा,मेट्रो में चलूंगा और कोई वीआईपी सुविधा भी नहीं लूंगा । अनेक भोले-भाले देशभक्तों की तरह मेरा दुर्भाग्य था कि मैं भी उनकी चिकनी चुपड़ी बातों में आ गया और अनशन के 30-35 दिन के दौरान लगभग 30-35 लाख रूपया खर्च किया।
मुझे नहीं पता था कि हमारे महामहिम, राजनीति के महान खिलाड़ी, केवल झूठ बोलते हैं, छल-कपट करते हैं और धोखा-धडी की कला में उन्होंने निपुणता (Ph.D) प्राप्त कर रखी है। वास्तव में, इन सफेदपोश नेताओं ने राजनीति को झूठ,छल-कपट व धोखा-धड़ी का धंधा को आम लोगों को भ्रमित करने के लिए,उसे राजनीति का नाम दे दिया है।
मैं दिल्ली के अपने प्रिय बहन भाइयों से पूछना चाहता हूं कि वे मुफ्त बिजली व मुफ्त बसों की यात्रा के छोटे-छोटे लालच में फंसकर राजनीति के इन मक्कारो को कब तक वोट देकर सत्ता पर बिठाते रहेंगे ???
अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपना कर हमारे देश को 200 वर्षों तक गुलाम बनाए रखा। आज के हमारे महामहिम राजनेता भी छोटी-छोटी चीजों का लालच देकर हम पर शासन कर रहे हैं ।
क्या केजरीवाल जैसे राजनीति के इन कर्णधारों की आत्मा इतनी मर चुकी है कि उन्हें महलों के सुख-वैभव के लिए भोली भाली जनता का शोषण करने से भी डर नहीं लगता ? राजनीति की इन महान आत्माओं को केवल भगवान ही सद्बुद्धि दे सकते हैं।
जय हिंद जय भारत।
एक दुखी आत्मा
मोतीलाल गुप्त
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