सरकार की सजगता और
पुलिस की संवेदनशीलता से
पहले अपने अन्दर झाँके
सबसे बढ़कर है आम लोगों की सतर्कता-संवेदना के सकारात्मक परिणाम जबकि बेरुखी से मरते हैं लोग:
डॉ. प्रणव कुमार बब्बू
सिस्टम को कोसना और दोष देना बहुत अधिक आसान है. लेकिन अफसोस की बात तो यही है कि जितना अधिक ध्यान हम दूसरों की नकारात्मकता ढूंढ़ने और दूसरों के ऊपर उंगली उठाने में लगाते हैं उसका एक प्रतिशत भी यदि स्वयं को संवेदनशील, सजग बनाकर सतर्क होकर दूसरों की जरूरतों को समझें तो उत्साहजनक परिणाम नजर आयेगा.
17 जून की रात मैंने एक छोटा-सा कदम बढ़ाया और खुशी की बात यह रही कि घटनास्थल पर उपस्थित कुछ युवाओं का साथ मिला. साथ ही इसे संयोग कहें या पुलिस की सजगता कि 100 नंबर पर कॉल करने के चार-साढ़े चार मिनट के अन्दर नामकुम पुलिस आ पहुँची और बुरी तरह घायल युवक को तत्काल अस्पताल पहुँचाकर उसकी जान को बचाना संभव हो सका.
17 जून की रात 9 बजे नामकुम से मोरहाबादी स्थित अपने आवास लौटते हुए जैसे ही नामकुम रेलवे ब्रिज को क्रॉस किया वैसे ही हाईटेंसन इंसुलेटर फैक्ट्री के पास सड़क किनारे अचेत पड़े एक युवक पर नजर पड़ी. चेहरा पूरी तरीके से लहूलुहान था जबकि पास में वह दुर्घटनाग्रस्त बाइक थी जिसपर वह युवक सवार था. उक्त युवक ने हेलमेट तो लगाया था पर शायद बेल्ट नहीं लगा था क्योंकि वह हेलमेट दूर पड़ा था. वहाँ आसपास 15-20 लोगों की भीड़ इकट्ठी थी तमाशाई बनकर. वहाँ से गुजरते हुए सभी बाइक, स्कूटी, फोर व्हीलर के साथ ही अन्य वाहनों को भी बहुत जल्दी थी. सभी तेजी से गुजरते जा रहे थे लेकिन किसी के पास भी इतनी फुर्सत नहीं कि वहाँ रुककर स्थिति देखे और मदद करे. सभी जैसे बेजुबान और तमाशा देखनेवाले.
लेकिन ऐसी घटनायें मुझे शुरू से ही विचलित करती है क्योंकि बहुत सारे अपनों-परायों को मैंने इसी हाल में इस दुनिया को छोड़ते हुए देखा है जब उन्हें किसी की मदद नहीं मिली. ऐसी स्थिति में मैंने अपनी सीमित समझ के अनुसार तत्काल बुरी तरह घायल युवक के पल्स को चेक किया लेकिन कुछ पता नहीं चला. फिर मैंने स्वतः स्फूर्त उसकी छाती पर अपना कान रखा और इतना तो पता चल ही गया कि उसकी धड़कनें चल रही है अर्थात जीवन की आस अभी बाकी है. तब मैंने वहाँ सभी को मदद करने के लिये डांटा, पुकारा या पुचकारा... अब आप इसे जैसा भी समझ लें. दो-चार युवक सामने आये और उन्होंने घायल युवक को उठाकर डिवाइडर के ऊपर रख दिया. इधर मैंने तत्काल 100 नंबर पर डायल कर पुलिस को घटना की सूचना दी और संयोग ऐसा बढ़िया साथ ही पुलिस की संवेदनशीलता भी कि बमुश्किल चार-साढ़े चार मिनट के अंदर नामकुम थाना की पुलिस आ गयी और उसने तेजी से कार्रवाई करते हुए घायल युवक को टेंपो में डालकर अस्पताल भेज दिया. यहाँ यह बताना भी बहुत आवश्यक है कि इस दौरान वहाँ से दो एंबुलेंस ऐसा गुजरा जो पूरी तरीके से खाली था लेकिन फिर भी ड्राइवर ने पुलिस का मामला बताते हुए मना कर दिया.
इस घटना को बताने का उद्देश्य ना तो उस प्रशंसा को बटोरना है जिसकी कोई भी कीमत नहीं और वह कौड़ियों के भाव मिलता है. मक़सद है तो बस इतना कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें खासकर जब जान बचाने की बात हो. हम ना तो सरकार को बवजह दोष दें ना ही उसे नाकाम कहने-सुनने को फैशन बना दें. खासकर ऐसे संवेदनशीलता एवं मानवीयता जैसे मामले पर पुलिस को कोसना भी बंद करें क्योंकि पुलिस कोई देवदूत या भगवान नहीं है. लेकिन समय आने पर वह इससे कम काम भी नहीं करती. यदि कल पुलिस को सूचना ही नहीं मिलती तो संभव है कि पुलिस की ओर से ऐसी मदद भी नहीं मिलती. यहाँ हर किसी को एक बात हमेशा याद रखनी चाहिये. यदि सड़क दुर्घटना में आपके सामने घायल-पीड़ित कोई अनजान व्यक्ति है तो वह उतना भी अनजान नहीं है जिसे आपकी बेरुखी बर्दास्त करनी पड़े. कोई न कोई आपकी करनी को देख रहा है और वह भी आपकी अंतरात्मा के साथ. इसका ख्याल जरूर रखिये. हर पल. साथ ही इस दुनिया में अपने किये का कर्म ही हर किसी को भुगतना पड़ता है. यदि आपने किसी की मदद की या फिर ऐसे किसी व्यक्ति की मदद करने से आप पीछे हट रहे हैं तो तनिक सोचिये जरूर. यह बात इसलिये भी बहुत अधिक आवश्यक है कि यदि आपके या फिर आपके किसी अपने के साथ ऐसी ही घटना घटती है और उसे किसी की मदद नहीं मिलती है तो आपके ऊपर क्या गुजरेगी? जरूरत इस बात की भी है कि ऐसी किसी भी घटना को देखने के बाद हम अपनी नेतृत्व क्षमता (लीडरशिप स्किल) का पूरा उपयोग करते हुए वहाँ उपस्थित लोगों की टीम बनाते हुए पीड़ितों-घायलों की मदद करें. एक बात को हमेशा ध्यान में रखें. ऐसी किसी भी दुर्घटना के घटित होने के बाद शुरुआती एक घंटा बहुत महत्वपूर्ण होता है जिसे चिकित्सकों की भाषा में गोल्डेन ऑवर कहा जाता है. उक्त समय के दौरान यदि घायल व्यक्ति अस्पताल पहुँच जाता है तो उसके बचने की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती है और ऐसे शुभ कर्म से आप अपने आप को पीछे हटाकर न केवल अपनी बर्बादी की कहानी लिख रहे हैं बल्कि इस दुनिया में एक ऐसा खराब प्रमाण पेश कर रहे हैं जिसे सुनकर आपको स्वयं ही शर्मिंदगी होगी और अपने-आपको आप कभी भी क्षमा नहीं कर पायेंगे. इसलिये अपनी क्षमता को पहचाने. हर जगह भगवान, ख़ुदा या ऊपरवाले की ओर से वास्तव में व्यक्ति ही होता है जो उसका प्रतिनिधि या दूत होता है. उसी से ऐसे समय में घायल की मदद अपेक्षित है क्योंकि एक व्यक्ति की जान बचाना केवल एक व्यक्ति की नहीं बल्कि, उसके पूरे परिवार के प्राण को बचाना और उसे नया जीवन देना है.
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