वो बचपन का नजराना

वो बचपन का नजराना


पाच रुपए की टॉफी में पूरे क्लास को पार्टी देना 
वजह चाहे खुच भी हो हमारी खुशियों का 
पर कागज के टुकड़े उड़ा कर।
पूरे क्लास को बर्फनुमा हिमालय बना देना।
गम में किताबो को और खुशियों में यारो को गल लगाना।
कितना हसीन था न यार वो बचपन का नजराना।।
मिट्टी की दीवार पर चढ के पर्वत की खुशी पाना।
बाहे फैला के तेज हवाओं में बंद आंखों से असमा का सफर करना ।
कोयल की कॉपी करके तितली के पीछे भागना।
सुपर मैन बनके पेड़ पर चढ़ना और बंदर कि तरह उपर से लटक जाना।
कितना हसीन था न यार वो बचपन का नजराना।
झूठी प्यारी बाते बोल कर लोगो को उलझना।
पकड़े जाने पर फिर नए बहाने बनाना।
लम्बी पुल खुद के तारीफों के बाधना।
कोई और करे तो गलती हजार निकालना।।
अपना घर छोड़ के दोस्तो के घर ही रहना ।
हसंते सोना हसंते उठना और मनमानियां करना।
कितना हसीन था न यार वो बचपन का नजराना
लेखक
Ankita Rai

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