हमारे समाज का अधूरा ज्ञान और धुंधला होता विज्ञान

हमारे  समाज का अधूरा ज्ञान  और धुंधला होता विज्ञान


    आज की नई पीढ़ी वेदों और कथाओं में रुचि नहीं रखती और देवी देवताओं और वेदों पर तो ऐसे उंगली उठाती है जैसे पढ़े लिखे अनपढ़ ही दुनिया चलाते हैं।
isro के काम की सराहना न करके कुछ पढ़े लिखें जाहिल सवाल उठातें हैं । हमारे पूर्वजो ने प्रकृति और विज्ञान दोनो के खजाने में अद्दभुत ज्ञान और विज्ञान दोनो दिए हैं लेकिन नई पीढ़ी उसे अपनाना नहीं चाहती ,
उनमें से कुछ वर्तमान समय कुछ ऐसी बातें सामने आई जिसकी चर्चा मैं यहाँ करना चाहूंगी। 
क्यों यह स्थिति पिछले 20 वर्षों तक हमारे साथ थी हम अपनी परम्परा को निभाने के लिए बाध्य नहीं बल्कि परम्परागत तरीके से निभाते थे।
पहले जब किसी के घर मे किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती थी तब 13 दिन तक उस घर मे कोई प्रवेश नहीं करता था , यहाँ पर मैं लेकिन लगा रही हूं क्योंकि लेकिन लोग सामाजिक और परिवारइक होने के नाते मिलने जातें थे घर और परिवारजन से उस दौरान किसी को छूते नहीं थे जब तक अपने घर आकर नहा कर कपड़े न बदल लें। दूसरी ओर जिसके घर मे मृत्यु हुई है उसके घर का कोई भी सदस्य किसी से मिलता नहीं था इसी समय (आइसोलेशन पीरियड) कहा जाता या माना जाता था। क्योंकि मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होता किसी बीमारी से हुई था प्रकृतिक मौत है (बृद्धा अवस्था ) मे हुई हो जिसमें उस व्यक्ति में कितनी कमियां या रोग थे शरीर साथ छोड़ते ही वह बीमारी किसी अन्य को न हो सके इसलिए मृत शरीर को अग्नि दिया जाता है संस्कारो के आधार पर इस समय को 14 दिन का क्वारटैंन पीरियड या समय कहा जाता था । जो व्यक्ति मृत शरीर को अग्नि देता था उसको घर के सदस्य नहीं छूते थे नहीं खाना बनाकर खिलाते थे वह व्यक्ति अपने सारे कार्य खुद करता था तथा लोगो से दूर रहता था एकांत कमरे में उसका हर चीज खाना बिस्तर कपड़े सब अलग और सामान्य होतें थे जिसको 13 दिन कोई नहीं छूते थे ।
उसके पश्चात तेरहवें दिन शव को अग्नि देने वाले के बाल नाखून वस्त्र सब हटवा देते थे तथा उस पीरियड में जितने लोग चाहते थे सर के बाल हटवा देते थे अपनी शुद्धि और परिवार की शुद्धता के लिए उसके बाद पूरा परिवार शुद्ध होता था तथा घर मे शुद्धिकरण के बाद हवन पूजन को आयोजित किया जाता था । तथा शरीर की दुर्बलता को खत्म करने के लिए भोज का आयोजन किया जाता था । सिर्फ पांच व्यक्ति के लिए जिससे घर की शुध्द ऊर्जा का संचार पुनः हो सके।


उस वक्त भी पढ़े लिखे अनपढ़ भारतीय सस्कृति का मजाक बनाते थे । जब कोई महिला को माहवारी के दिनों में 5 दिन के लिए एकांत में रखा जाता था क्योंकि वह महिला उन दिनों ज्यादा कार्य न करें तथा किसी व्यक्ति को छुए नहीं क्योंकि शरीर के तापमान में भी बदलाव होने के कारण किटाणु या गन्दगी न फैले और वह स्त्री भी बीमारियों से लड़ने में सछम रहें ।
तब लोगो को लगते लगा स्त्री से भेदभाव हो रहा है । आज वही भेदभाव खत्म करने के चक्कर मे कई बीमारियों को न्योता दे बैठे स्त्रियां जो दुर्बल होने लगी कमर में दर्द शरीर कमजोर दिमाग मे चिड़चिड़ापन लोगो से दूरी बना लेना।
तब भी लोगो ने परम्पराओ का मजाक बनाया और आज भी पहले भोजन करने से पहले कपड़े बदलते थे हाथ पैर धोते थे घर के जूते चप्पल घर के बाहर होते थे
आज विज्ञान का दौर है साहब सब कुछ अंग्रेजी है चमड़े के बेल्ट चमड़े के जूते पहनकर भोजन खड़े होकर करने लगें पशुओं जैसे संस्कार और ससँस्कृति सब ताक पर रख दिया। 
पहले जब कोई घर आता था बाहर से तो फूल की थाली में गर्म पानी रखकर नमक डालकर पैर धोती थी घर की महिलाएं यह परंपरा नई पीढ़ी नहीं जानती क्योंकि इस परंपरा को बिजनेस के रूप में ब्यूटी पार्लर ने ले लिए (महिला सैलून)जिसकी आवश्यकता भी नहीं थी अब घर की महिलाएं सर पर पल्ला या चेहरा नहीं ढकती जो आधुनिक मास्क था हम अंग्रेजी समाज का छोला पहन चुके हमारी ससँस्कृति को लोग गालियां देते हैं विदेशी हम उन्ही विदेशी कल्चर और सुविधाओं को महत्व देने लगे टेबल पर चप्पल जूते पहन कर भोजन करतें है 
धरती पर बैठकर जब भोजन करते थे तो भोजन का स्वाद और ऊर्जा बढ़ जाती थी आधुनिकता ने ऐसा जकड़ा की अनेक नई बीमारियां उतपन्न होने लगी 
विज्ञान और परमात्मा दोनो को लेकर चले किसी एक को पीछे छोड़कर नहीं 
बातें तो बहुत है पर आज इतना ही कहना चाहूंगी परपंरा को न छोड़े अपने पूर्वजों की 
आई लव यू नहीं ॐ नमः शिवाय को याद करें अपने बच्चों को सच्चाई से अवगत कराएं आधुनिकता से नहीं रामायण और गीता उपदेश पढ़ाए हॉलीवुड की कहानी नहीं।
प्रस्तुति
अन्नपूर्णा श्रीवास्तव

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