इतिहास के पन्नों से : आर एस एस यानी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भी अपनी पोशाकों का भारतीय करण नहीं किया है

इतिहास के पन्नों से : आर एस एस यानी कि 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज भी अपनी पोशाकों 

का भारतीय करण नहीं किया है

काली टोपी और हाथ में डंडा इटली के तानाशाह मुसोलिनी के प्रतीक तो खाकी पैन्ट जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर के प्रतीक लगता और सफेद शर्ट आर्यत्व के प्रतीक लगता हैं।



    आर एस एस की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने विजयदशमी के दिन 27 सितंबर 1925 को नागपुर में 17 ब्राह्मण सदस्यों के साथ किया था ।आर एस एस का 95 वर्षों में छह संघ प्रमुख हुए पहला डॉ केशव बलिराम हेडगेवार दूसरा माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर तीसरा मधुकर दत्तात्रेय देवरस(बाला साहब) चौथा प्रोफेसर राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया पांचवा कृपाली सीतारमैया सुदर्शन और छठा डॉ मोहन राव मधुकर राव भागवत । सभी छह संघ प्रमुखो में पांच ब्राह्मण और एकमात्र उत्तर भारतीय राजपूत जाति से रज्जू भैया थे , आर एस एस के वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2018 में घोषित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कूल 49 सदस्य है जिसमें 39 ब्राह्मण 4 वैश्य 2 कायस्थ दो खत्री और दो जैन है ।
आर एस एस का प्रकार- स्वयंसेवी संस्था निस्वार्थ राष्ट्रभक्ति अर्धसैनिक , उद्देश्य - भारतीय राष्ट्रवाद सेवा क्षेत्र - भारत ,विधि- समूह चर्चा बैठकों और अभ्यास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक प्रशिक्षण । प्रार्थना - नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे अर्थात मातृभूमि आपके सामने शीश झुकाता हूं ।
आर एस एस का राष्ट्रीय ध्वज - भगवा , संविधान- मनुस्मृति, राष्ट्रीय भाषा- संस्कृत , कानून - मनु आचार संहिता । आर एस एस पर अभी तक तीन बार प्रतिबंध लग चुका है पहली बार 1948 मैं कारण राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या मे शामिल होने का आरोप प्रतिबंध की अवधि 18 माह सितंबर 1949 को प्रतिबंध हटाया गया प्रतिबंध हटाने के शर्तें संघ अपना संविधान बनाकर प्रकाशित करेगा और लोकतांत्रिक तरीका से संगठन में चुनाव होंग राजनीतिक गतिविधि से संघ दूर रहेगा राष्ट्रीय ध्वज और संविधान का सम्मान करेगा लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करेगा। दूसरी बार आर एस एस पर प्रतिबंध 1975 में आपातकाल के दौरान लगा और तीसरी बार 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में प्रतिबंध लगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्या के आरोप में संघ के दुसरे प्रमुख एमएस गोलवलकर 1 फरवरी 1948 को नागपुर से गिरफ्तार किए गए थे और मध्य प्रदेश के बैतूल जिला के जेल के बैरक नंबर एक में रखे गए थे छह माह बाद उनकी रिहाई हुई थी संघ अपनी स्थापना के 95 वर्षों के बाद भी अपने संगठन का निबंधन नहीं कराया है , 95 वर्षों से बिना निबंधन के ही देश और दुनिया भर में लगभग 40 देशों में आर एस एस का संगठन संचालित हो रहा है और अरबों खरबों का संपत्ति आर एस एस ने बनाया है लेकिन निबंधन नहीं होने के कारण आर एस एस का ऑडिट नही होता है और नहीं आयकर विवरणी ही भरा जाता है । 1949 मे जेल से छूटने के बाद एमएस गोलवलकर ने तत्कालीन गृह मंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल को एक पत्र लिखा की संघ पर से प्रतिबंध हटाया जाए उसके जवाब में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एमएस गोलवलकर को कहा कि संघ का पहले सविधान बनाइए जिस पर गोलवलकर ने कहा कि संघ का संविधान चोरी हो गया है उसके जो कुछ अंश याद है उसी के आधार पर संघ का संविधान का प्रारूप तैयार कर रहे हैं ।
आर एस एस का कोई सदस्यता रसीद भी नहीं है और नहीं कानूनी तौर पर आर एस एस का कोई सदस्य ही कहलाता है निबंधन नहीं कराना और सदस्यों की सूची नहीं रखना आर एस एस का एक अपनी रणनीति है जिसका लाभ महात्मा गांधी के हत्या की साजिश में शामिल होने के आरोप पर उठाया क्योंकि नाथूराम गोडसे को आर एस एस का सदस्य कहा जा रहा था इस पर आर एस एस ने कहा था कि मेरा तो कोई सदस्य ही नहीं है और ना ही कोई सदस्य होते हैं ,आर एस एस में सभी लोग स्वयं आते हैं और स्वयंसेवक बनकर राष्ट्र की सेवा का संकल्प लेते हैं ।
निबंधन का विवाद बढ़ता जा रहा था आर एस एस नाम से ही सामाजिक कार्यकर्ता और अंबेडकरवादी जनार्दन मून ने निबंधन कराने के लिए आवेदन दिया जिस पर निबंधन करने वाली संस्था ने आवेदन संख्या को ही निबंधन मानकर अपना कार्य करते रहने का निर्देश दिया उसके बाद से अंबेडकरवादी जनार्दन मून राष्ट्रीय स्तर पर आर एस एस के नाम से कई कार्यक्रम आयोजित करते आ रहे हैं निबंधन के विवाद न्यायालय में भी पहुंचा तब न्यायालय में आर एस एस समर्थक और अधिवक्ता राजेंद्र गुंडलवार ने न्यायालय में जानकारी दी की आर एस एस का पंजीयन हो चुका है और इसका पंजीयन नंबर एमएच 08 0018 394 डिजिट कोड 94 910 है इसका मुख्यालय चंद्रपुर में है जबकि आर एस एस का मुख्यालय रेशमी बाग नागपुर है और वही से संचालित होती है , निबंधन के विवाद बढ़ने पर 21 सितंबर 2018 को सरसंघचालक डॉ मोहन राव मधुकर राव भागवत ने कहा था कि आर एस एस का स्थापना अंग्रेजों के शासन काल में हुआ था उस समय संस्था का पंजीयन कराने का कोई नियम नहीं था इसलिए संघ का पंजीयन नहीं कराया गया लेकिन संस्थागत नियमों का पूरा का पूरा पालन किया जा रहा है जबकि आर एस एस नाम से पंजीयन का आवेदन देने वाले अंबेडकरवादी जनार्दन मून ने कहा कि अंग्रेजों के समय में भी संस्था पंजीयन का नियम था और संस्थाएं सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1860 के तहत रजिस्टर्ड हो रही थी। आर एस एस के दूसरे गुरु एमएस गोलवलकर ने कहा था कि भगवा ध्वज ही भारतीय है और एक न एक दिन भगवा ध्वज के सामने पूरा देश सिर झुकाएगा , जब तक तिरंगा में 1 पट्टी भगवान नहीं होगा तब तक हिंदू इसे नहीं मानेंगे ।
हिंदू महासभा के प्रमुख रहे विनायक दामोदर सावरकर ने कहा था कि कुंडलिनी और कृपाण के साथ भगवा ध्वज ही राष्ट्रीय ध्वज होगा और उसी को हिंदू सलाम करेंगे । 2001 में 26 जनवरी के दिन रेशमी बाग नागपुर स्थित आरएसएस के मुख्यालय पर तीन युवकों ने घुसकर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी, आर एस एस ने तीनों युवकों पर मुकदमा दायर कराया था मुकदमा संख्या 176/ 2001 दायर किया गया था तीनों युवक राष्ट्र प्रेमी दल के सदस्य थे तीनों युवकों में बाबा मेंढे, रमेश कलंबे तथा दिलीप चटवानीशामिल थे, 12 वर्ष तक जेल में रहे और 2013 में निचली अदालत ने उन्हें बरी किया था ।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के बाद मुंबई की अंग्रेजी सरकार ने एक मेमो में खुशी व्यक्त करते हुए लिखा था कि आर एस एस ने अपने को कानून के दायरे में रखा और 42के अगस्त अशांति में भाग नहीं लिया 30 नवंबर 1949 को आर एस एस ने अपने मुखपत्र ऑर्गेनाइजर में छपे एक लेख में संविधान को लेकर एक आलोचना की थी और मनुस्मृति को संविधान बनाने की वकालत की थी आजादी के 72 साल बाद आर एस एस ने अपने मुख्यालय पर 2002 में तिरंगा फहराया था आर एस एस ने भगवा रंग को राष्ट्रध्वज बनाने की मांग अवश्य करती है लेकिन उसके पोशाकों में यह कहीं दिखाई नहीं देता है उसके पोशाक में काली टोपी इटली के तानाशाह मुसोलिनी के प्रतीक लगता है क्योंकि मुसोलिनी ने अपने फासिस्ट स्वयं सेवकों के लिए काला पोशाक ही निर्धारित किया था मुसोलिनी ने अपना एक स्वयंसेवक दल बनाया था जिसे हथियार वर्दी और झंडा थमा कर परेड में प्रशिक्षण दिया करता था उसके स्वयंसेवक संघ के सदस्य उसके विचारों के विपरीत संगठन और आम लोगों को दमन करना शुरू किया था और रोम नगर में घुसकर आतंक मचाया था 30 अक्टूबर 1922 को इटली की सरकार पर मुसोलिनी ने कब्जा कर लिया था 1928 में मुसोलिनी ने एक दलीय शासन व्यवस्था लाया और एक कानून बनाया कि उसके जो सूची में जो लोग रहेंगे उन्हीं का चुनाव करना है , लोकतंत्र को समाप्त कर दिया था फासीवादी शिक्षा बच्चों के लिए अनिवार्य कर दिया था मजदूर आंदोलन पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे और मजदूर यूनियन को समाप्त कर दिया गया था उसी तरह जो खाकी रंग का अर्थात भूरे कलर का जो पैंट है आर एस एस का यही खाकी रंग की वर्दी हिटलर अपने स्वयंसेवकों को भी पहन ने के लिए निर्धारित किया था हिटलर भी अपने लोगों को हथियारों का विशेष प्रशिक्षण देता था और हिटलर ने भी जर्मनी में लोकतंत्र को समाप्त कर एक दलीय शासन व्यवस्था लागू किया था , हिटलर ने अपनी पार्टी नाजी दल का चुनाव चिन्ह स्वास्तिक रखा था, 60 लाख यहूदियों को मरवा दिया था । आर एस एस का जो सफेद शर्ट है वह आर्यत्व का प्रतीक है ।
वर्णवादी व्यवस्था में आर्यों ने जो चार वर्ण बनाया था उन चारों वर्णों का रंग भी निर्धारित किया था ब्राह्मण का सफेद रंग छत्रिय का लाल रंग वैश्य के लिए पीला रंग और शूद्र के लिए श्याम वर्ण अर्थात नीला रंग निर्धारित किया गया था।
*मनोहर कुमार यादव,पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समाजवादी पार्टी झारखंड*

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