निराकार नहीं सभी आकार है

निराकार नहीं सभी आकार है



    संपूर्ण ब्राह्माण्ड मेंअंधेरा है अनन्त:तारे,ग्रह,उपग्रह,पुछल्ले पथ्थर,तारे है,अपने वेग के चक्कर में घुम रहे हैं भ्रमण कर रहे हैं कोई स्थिर नहीं है सभी आकार,स्वरूप में हैं हमारे सौरमंडल में सुर्य प्रकाशमय,अग्नियुक्त,तापयूक्त चुम्बकीय सभी ग्रहो,उपग्रहों को चुम्बकीय रूप से अपने अपने प्रभाव से स्वत:नियंत्रित अपने धुरी में घुमाते हुए सुर्य का चक्कर लगा रहे हैं।नो ग्रहो में मात्र पृथ्वी पर जीवन है जहाॅं वायु,अग्नि,जल स्त्रोत युक्त प्राकृतिक वातावरण में भूमि झील,नदी,पर्वत, मरूस्थल,जंगल है उसमें वास करते अन्य:जीव,जन्तु,पक्षी,पशु, मनुष्य रूपी जीवन है।जन्म-जीवन-मृत्यु चक्र है,निर्माण-नष्ट प्रक्रियाओ से युक्त है प्राकृतिक हो या विज्ञान, तकनीकी जो मनुष्य के मस्तिक के प्रयोग, अनुसंधान द्वारा निर्मित, निर्माण युक्त सभी वस्तु,द्रव हो वह भी अपनी निर्धारित आयु तक जीवन,उपयोग युक्त है सभी अपने अपने ऊर्जा, शक्ति,आत्मा से सक्रिय जीवित रहते हैं।आयु,क्षमता समाप्त होने के बाद मृत होकर कुड़ा के समान हो जाते हैं।उसे धरती पर अग्नि में जलाकर या दफन करके नष्ट किया जाता है। अग्नि के ज्वाला में नष्ट शरीर,वस्तु से कीटाणु की उत्पति नहीं होता है और प्रदुषण,महामारी नहीं फैलता है। दफन शरीर,वस्तु से किटाणु,कीड़ा जन्म लेता है और प्रदुषित वायु से महामारी फैलता है जो प्राकृतिक वातावरण को विषाक्त बनाती है और जीवन को नष्ट करती है। सुर्य,अग्नि प्रकाश से पृथ्वी के अधिकांश हिस्सा में उजाला,ताप फैलाती है और अग्नि के ताप से भोजन तैयार होता है प्रकाश से अंधेरा दूर होता है सुर्य,अग्नि के प्रकाश,ताप से मनुष्य को ऊर्जा मिलती है, वातावरण शुद्ध होता है।
सब आकार है कहाॅं निराकार है जो है सबका नाम,उपयोग है जो दिख रहा है वह सत्य है जो नहीं दिख रहा है वह असत्य है।जन्म है तो मृत्यु है और निर्माण है तो विनाश भी है। वायु भी निराकार नहीं है वह भी आकारयुक्त हमारे जीवन के प्राणवाहक है कभी आकार लेती ऑंधी,तुफान बनके प्रलयकारी वेग में जहाॅं तहाॅं प्रलय तांडव करती है परन्तु शांत श्वास द्वारा हमारे हृदय स्थित फैफरा सक्रिय रखकर जीवन को सक्रिय रखती है। विभिन्न रूपों में आकार परिवर्तन लेती पृथ्वी भी अंगराई लेती रहती है परिणाम स्वरूप प्राकृतिक आपादाओ द्वारा शुद्धिकरण होते रहता है।
अर्थात जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है अगर विकास है तो विनाश भी है और निर्माण है तो नष्ट प्रक्रिया है जब तक आयु है जबतक जीवन है। प्राकृतिक या विज्ञान द्वारा जन्म(निर्माण), मृत्यु (नष्ट) प्रक्रिया है।
अर्थात जीवन/समय/भाग्य मनुष्य के द्वारा नियंत्रित नहीं है परन्तु जन्म, मृत्यु /निर्माण-नष्ट जो प्रकृति-मनुष्य (जीवधारी)के नियंत्रित है।
सभी एक दुसरे के आहार है।सनातन वेद,पुराण,रामायण, भगवद्गीता में जन्म-जीवन-मृत्यु चक्र और धर्न-अधर्म, पुण्य-पाप,कर्म का मुख्य उदाहरण मुख्यत भगवान श्री कृष्ण के कथनों उपदेश वाणी है।चारों वेद ऋषि, मुनियों के घोर तपस्या,उपासना,चिंतन, आत्ममंथन,कर्दम कांड, ईश्वरीय आराधना,स्वृति का महादर्शन है जो सुर्य,अग्नि,वायु,जल, पृथ्वी,नारी स्वरूपों का वंदना,यज्ञ आहुति ईश्वरीय आराधना,तपस्या जो मंत्रोचार विधी का उल्लेख है।
किसी धर्म के नाम, ईश्वरीय नाम,कर्म, विचारों का नकल,उच्चारण,धार्मिक, सामाजिक व्यवस्थाओ कर्म,भाषा का उल्लेख नहीं है और उसे असत्य अपने को सत्य उदाहरण स्वरूप उल्लेख नहीं करता है।
सृष्टि निर्माण,रक्षक,संचालक महात्रिदेवो परमपिता भगवान श्री ब्रह्मा जी, भगवान श्री विष्णु जी, परमात्मा भगवान श्री शिव जी और महात्रिदेवियो ज्ञान,संगीत दायिनी माता सरस्वती जी,धन-समृद्धि दायिनी माता महालक्ष्मी जी, शक्ति स्वरूपा रक्षा करने वाली माता पार्वती जी और अन्य देवी देवताओं के द्वारा संपूर्ण ब्राह्मण्ड,सृष्टि संचालन,ईश्वरीय लीलाओं का उल्लेख है। वह परम सत्य है।
जब सब आकारयुक्त है तो निराकार कौन?उसका नाम कैसे?
नकल सत्य नहीं हो सकता है।सनातन धर्म-संस्कृति,समस्त वेद,पुराण,अन्य सभी ग्रंथो में उल्लेख,पृथ्वी,नारी,मादा ,प्रकृति जो जन्म देने वाली माता के रूप में सदा पूज्यनीय है।
सनातन धर्म-संस्कृति चाहे पौधे,वृक्ष,वन हो,वायु-अग्नि-जल हो,सुर्य-चाॅंद-सितारे ,अन्य ग्रह हो,झील-नदी-सागर हो,पर्वत, मरूस्थलहो,जीव,जन्तु,पक्षी,पशु, मनुष्य (नर-नारी/नर-मादा) हो,प्रकृति हो सबकी पूजा, आराधना करना सिखाता है।
सत्य ही सनातन है। सत्य ही जन्म-जीवन-मृत्यु है। आप सभी का कल्याण हो,जगत का कल्याण हो। तथास्तु।:राम प्रकाश तिवारी

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