किसान मोदी सरकार पर भरोसा कैसे करें जब सरकार की नियत में ही खोट दिख रही है

किसान मोदी सरकार पर भरोसा कैसे करें जब 

सरकार की नियत में ही खोट दिख रही है

फुट डालो और राज करो कि नीति पर चल रही है केन्द्र सरकार



    आंदोलनकारी किसानों से कई चक्र की वार्ता में शुरू से ही सरकार का रवैया एक शक पैदा करता है और शुरुआत से आज तक सरकारी चालाकी का यह पैटर्न लगातार दिखा ।
पिछले माह 3 बार वार्ता करने आए किसान प्रतिनिधियों से कहा गया कि मंत्री बात करेंगे लेकिन आए सरकारी अफसर जाहिर है नाराजगी होगी, दिल्ली में चल रहे आंदोलन के बाद इस हफ्ते भी पहले दिन की वार्ता के ठीक 2 घंटे पहले एक मंत्री अलग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेता से बातचीत करने लगे इसी बीच खबर लिक कि गई कि आसपास के कई भाजपा शासित राज्यों से किसान सरकार के तीनों कानूनों के पक्ष में आंदोलन करेंगे ।
फिर वही चला कि दिखी। सरकार ने भी प्रस्ताव दिया की एक समिति बने बातें जिसमें विशेषज्ञों के अलावा किसानों के चार से 6 प्रतिनिधि रहे जाहिर है विशेषज्ञ सरकार चुनती यानी उनके पक्ष वाले लोग उनका बहुमत भी होता और बात का वजन भी । लिहाजा कुछ माह बाद जब रिपोर्ट आती तो कानून को सही बताया जाता और किसानों का आंदोलन गलत। चलाकि यह की गई कि समिति के लिए 4 से 6 किसान सदस्यों को नामित करने का मतलब आंदोलन मे टुट क्योंकि यह आंदोलन स्वतः स्फूर्त है
कुल 35 वार्ताकार किसानों प्रतिनिधियों में से केवल 4 को चुनने का मतलब विखराव , किसान प्रतिनिधि यह समझ गए अतः उन्होंने सरकार की चाय व खाने का निमंत्रण ठुकरा कर अपना खाना फर्श पर बैठकर खाया उन्हें मालूम था कि हर जगह कैमरे लगे हैं और सरकार धीरे से फोटो मीडिया को दे देगी प्रतिनिधियों का सरकारी दवातखाना आम किसानों को नागवार गुजरता जो घाटा सह कर आंदोलन स्थल पर रसद भेज रहे हैं सरकार जनता की पालक होती है ऐसी ओछी चालाकी का अगर शक भी हो जाए तो सरकार का गुड गवर्नेंस तो छोडे़ सहज शासन चलाना मुश्किल हो जाता है ।
सरकार को संभवतः एहसास हो गया है ।
मनोहर कुमार यादव , पूर्व प्रदेश अध्यक्ष समाजवादी पार्टी झारखंड

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