थोड़ा-सा रो लिया कीजिए !
सचमुच, ये दौर अच्छा नहीं है
बाहर होता शोर अच्छा नहीं है
इसलिए थोड़ा-सा रो लिया कीजिए
अपना दुख-दर्द धो लिया कीजिए !
सुना था
रोने से दुख हल्का हो जाता है
महसूस कर रहा हूँ
सच मानिए, ज़िंदा हूँ
पर इन दिनों रोज थोड़ा-सा मर रहा हूँ
पर पूरा मरने का इरादा नहीं
ऐसा कोई खुद से वादा भी नहीं
जानता हूँ आप भी यही सोच रहे हैं
ज़िंदा रहने की हर तरकीब खोज रहे हैं
इसलिए थोड़ा-सा रो लिया कीजिए
अपना दुख-दर्द धो लिया कीजिए !
मेरे रोने का कारण बहुतों की बेबसी है
मैं विवश कुछ कर नहीं पा रहा हूँ
इसलिए हुआ विवश उनके साथ
थोड़ा-सा मैं भी मरता जा रहा हूँ !
आज का पूरा सच यही कि
पापी सत्ता के आगे सब लाचार हैं
कुछ मूर्ख, धूर्त और बिकाऊ लोग
जो सचमुच मर चुके, इसके हथियार हैं
उनके बूते ही ये पाखंडी, अधर्मी
बन गए आज हमारे जीवन के ठेकेदार हैं
सच, इनके आगे आज सब लाचार हैं
इसलिए थोड़ा-सा रो लिया कीजिए
अपना दुख-दर्द धो लिया कीजिए !
अब सबसे जरूरी बात सुनिए
ज़िंदा रहिए और खुद को बदलिए
बदलने को जीवन पूरी व्यवस्था बदलिए
बहुत हो चुका, खुद के लिए ही सही
अज्ञानता, स्वार्थ और बुजदिलि छोड़कर
हौसले के साथ बाहर निकलिए ।
पर, सावधान !
फिलहाल बाहर संक्रमण का संकट है
स्थिति बेहद विकट है
सरकारें कुंभकर्ण सी जाग उठी है
सरकारी विकास की गाड़ियां चल रही है
उनसे निर्दोष, लाचारों की लाशें जल रही है
अभी बाहर निकलने में खतरा है
विश्वास ना हो तो समाचार देखिए
आदमी सांसों के कितने लाचार, देखिए
हाँ, अंतिम सलाह याद रखिए
अभी दुख ज्यादा है, भीतर अट नहीं सकता है
दूसरों की तड़प से कलेजा फट भी सकता है
इसलिए थोड़ा-सा रो लिया कीजिए
अपना दुख-दर्द धो लिया कीजिए !
सीता राम शर्मा " चेतन "
नोट - इस रचना में नकारात्मकता नहीं सकारात्मकता है ।
घर में रहें । सुरक्षित रहें । सरकारी नियम कानून और दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करें ! 🙏
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