सोशल नेटवर्किंग की दुनिया और
बच्चों पर इसका हो रहा असर
आज हर घर में सोशल मीडिया का बहुत ही जोर है, हर बच्चे का युवावस्था से पहले ही सोशल मीडिया पर अकाउंट का होना एक आम बात हो चला है । हकीकत तो यह है कि आजकल हर घर में मां-बाप स्वयं ही इतने व्यस्त हैं कि अपने बच्चों पर एवम उनकी एक्टिविटी पर ध्यान देना उनके लिए अनिवार्य ही नहीं है और जब बच्चा गलती करता है तो उस पर जोर जोर से चिल्लाना और उसको गलत ठहराना मां-बाप की आदत बन चुकी है जबकि मां-बाप को यह सोचना चाहिए ही एक बच्चे को सही दिशा देना सर्वप्रथम मां–बाप की जिमेदारी होना चाहिए।
चुकी आजकल सारी पढ़ाई मोबाइल एवम लैपटॉप स्क्रीन पर ही हो रही है ,और मोबाइल के साथ ज्यादा समय बिताने के कारण बच्चें भी मोबाइल के आदी हो चुके हैं। दिनभर इंटरनेट पर रहना ,सोशल साइट पर चैटिंग करना एवं नई चीजें खोजना भी बच्चों के शौक में अब शामिल है।
इन सब पर नियंत्रण रखने का एक मात्र साधन है कि बच्चों को इंटरनेट की इस दुनिया मैं जुड़े रहने का उनको सलीका सिखाया जाए। बच्चों को मां-बाप स्वयं से यह सिखाएं कि इंटरनेट की जो यह दुनिया है वह एकदम वास्तविकता से परे है ,उसमें हमें क्या व्यवहार रखना है! किस पर विश्वास करना है उनको इन सब चीजों का व्यवहारिक बनना होगा । तब जाकर आपके लिए सोशल मीडिया सुरक्षित होगा। आमतौर पर बच्चे इंटरनेट पर अपना सब कुछ अपडेट करते हैं हमें चाहिए हम अपने बच्चों को यह सिखाएं की इंटरनेट में सिर्फ ऑफिशियल होना चाहिए। ज्यादा पर्सनल होना ठीक बात नहीं बिना कुछ सोचे समझे कोई भी पोस्ट ना डालें अपने पर्सनल छाया चित्र ना डालें किसी को भी अपना पर्सनल नंबर ना दें ,ना ही कोई पर्सनल बात करें यह बच्चों के लिए बहुत जरूरी है।
आमतौर पर देखा गया है जैसा व्यवहार माता-पिता करते हैं वही व्यवहार बच्चे भी दोहराते है । इसीलिए माता-पिता को भी सोशल मीडिया की दुनिया से बाहर आकर अपने बच्चों को समय जरूर देना चाहिए । माना आज सोशल मीडिया बहुत जरूरी हो चुका है परंतु आज भी जो व्यक्ति एक अनुशासन में रहता है, सोशल मीडिया पर वही व्यक्ति सफल है आपने देखा होगा जितने भी महान वैज्ञानिक जितने भी बड़े लोग जो अपने जीवन में सफल हुए हैं उन्होंने सोशल मीडिया में समय ना देकर अपने निजी जीवन में अपने कर्म क्षेत्र के कार्य पर ज्यादा ध्यान दिया है , यही उनकी सफलता का कारण भी है। उनका नाम सदैव सोशल मीडिया पर छाया रहता है उन्हें स्वयं से अपडेट करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। सोशल मीडिया आपका संपर्क के लिए मदद करता है, इसका उपयोग हमें नई वस्तुएं खोजने और अपनी नॉलेज को बढ़ाने हेतु करना चाहिए। परंतु किस व्यक्ति से किस प्रकार का वार्तालाप और विश्वास करना है , यह हमें स्वयं ही समझना होगा । इसके लिए हमारा अनुशासित और एकाग्रचित होना बहुत जरूरी है परंतु आज ऐसा नहीं है मां-बाप स्वयं सोशल मीडिया में इतने व्यस्त हैं कि वह भूल ही जाते हैं कि उनके बच्चों पर इस चीज का क्या प्रभाव पड़ रहा है।
मात-पिता के अपने प्रति इस व्यवहार को देखते हुए बच्चे अक्सर अलग-थलग ही रहना सीख जाते हैं और इसका परिणाम यह है कि वह छोटी-छोटी बातें भी मां-बाप से साझा करना आवश्यक नहीं समझते। और कहीं ना कहीं यही कारण है के बच्चे मां बाप के साथ टाइम बिताने की जगह अपने मोबाइल पर टाइम बिताना ज्यादा पसंद करते हैं। आजकल छोटे-छोटे बच्चे भी मोबाइल को देखकर ही खाना पसंद करते हैं और मोबाइल के साथ ही खेलना पसंद करते हैं। कहने का अर्थ यह है कि अपने बच्चों को सही दिशा देने के लिए पहले स्वयं हमें ही अपने अंदर परिवर्तन लाना होगा यदि आप कामकाजी हैं और बच्चों को समय नहीं दे पा रहे अपने इस व्यस्तथा के चलते आप कम से कम ऑफिस से उनको कॉल करके उनसे बात जरूर कीजिए , अगर ज्यादा समय नहीं है ,तो भी खाने के समय कम से कम अपने बच्चों के साथ जरूर बिताने की कोशिश करें।इसके साथ ही जब भी अवसर मिले अपने बच्चों के साथ कोई न कोई एक्टिविटी जरूर करे । ताकि
सोशल नेटवर्किंग की दुनिया से बाहर निकल कर आपके साथ कुछ क्वालिटी टाइम बिता सके।
प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर मध्य प्रदेश
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