आज उनका जन्मदिन है....
संकलन विनोद कुमार सीताराम दुबे संस्थापक इन्द्रजीत पुस्तकालय एवं सीताराम ग्रामीण साहित्य परिषद जुड़पुर रामनगर विधमौवा मड़ियाहूं जौनपुर उत्तर प्रदेश
जिन से सब के जन्मदिन होते हैं
वे जब आते हैं
कष्टों की जेल के ताले टूट जाते हैं
बुराई रूपी प्रहरी सो जाते हैं
प्रेम करुणा रूपी नदी पैर छूने को
व्याकुल हो जाती है
डंठल भी सूप बनकर कवच बन जाते हैं
पिता ब्रह्याण्ड के रचयिता को
सिर पर उठाते हैं
कइयों ब्रह्याण्ड के जनक
दो माताओं के बेटे कहलाते हैं
संसार के पिता
बच्चों के सखा कहलाते हैं
कण कण में वास करने वाले
गईया चराते हैं
सकल सम्पति के रचयिता
घर में मख्खन चुराते हैं
स्वर और शब्द के जनक
वासुरी बजाते हैं
जिनके माथे संसार के सभी मुकुट
वे मोर पंख लगाते हैं
इंद्रियों के रचयिता
रणछोड़ बनकर
मानव लीला रचाते हैं
निर्गुण सगुण का योग कराकर
योगेश्वर कहलाते हैं
युद्ध के मैदान में
ज्ञान गीता बताते हैं
मानुष के लिए मानुष बनकर
मानुष की तरह जी कर दिखलाते हैं
इसलिए तो द्वारका में द्वारकाधीश
गोकुल में कान्हा कहलाते हैं
उनका क्या जन्मदिन
वे ही तो काल समय के भी
रचयिता हैं
सृष्टि का जन्म ही उन्ही से हुआ है
वे सिर्फ शरीर थोड़े ही न हैं
वे साकार भी हैं निराकार भी हैं
इसलिए जन्मते भी हैं
और नही भी हैं
जो नही है
वह जन्मेगा
जो सदा से ही है
वह क्या जन्मेगा
यह सब उनकी लीला है
जो मैं लिख रहा हूं
आप को जो दिख रहा है
यह भी उनकी रचना है
आप जो पढ़ रहे हैं
आप के भीतर भी
वही पढ़ रहे हैं
जब एक एक स्वास
उनसे है
तो हर स्वास से होने वाली
हर घटना रचना सब उनकी है
यह सब उनकी लीला है.....
जय श्री कृष्णा.....
डॉ रमाकांत क्षितिज
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