शिक्षक की भूमिका देश,समाज के निर्माण एवं मर्गदर्शन की होती है- राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल

शिक्षक की भूमिका देश,समाज के निर्माण एवं मर्गदर्शन

 की होती है- राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल



वाराणसी (राम आसरे)। देश की आजादी के 75वें साल पर अमृत महोत्सव शिक्षक दिवस समारोह मनाया जा रहा है।शिक्षक की भूमिका देश,समाज के निर्माण और मर्गदर्शन करने की भूमिका निर्वहन करते हैं,आपके(शिक्षकों)के कारण ही राष्ट्र,समाज को प्रकाश मिलता है जैसे की दीपक की ज्योति स्वंय जलकर प्रत्येक घरों में ज्योति से प्रकाश देता है।शिक्षक सम्पूर्ण राष्ट्र का नायक होता है।उक्त विचार उत्तर प्रदेश सरकार के स्टाम्प न्यायालय शुल्क एवं निबंधन राज्यमंत्री(स्वतंत्र प्रभार) रवींद्र जायसवाल ने सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनि भवन सभागार में आज मध्यान्ह 12:00 बजे विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित शिक्षक सम्मान दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किया।राज्यमंत्री श्री जायसवाल ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी जब अपने गांव जाते हैं तब वे अपने गुरु या शिक्षक के घर जाकर नमन कर आशीर्वाद लेते है यह गुरु-शिष्य परम्परा भारत की है और कहीं नही हो सकता।शिष्य कितना भी उँचा पद धारण कर ले लेकिन अपने शिक्षक के सामने सदैव नत हो नमन करता ।शिक्षक सेवा से निवृत्त होकर भी सदैव शिक्षक की भूमिका मे जाना जाता है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरेराम त्रिपाठी नेअध्यक्षता करते हुये कहा कि शिक्षा नीति इस अनुरुप बनायें जिससे शास्त्र की रक्षा करते हुये लागू हो सके। उसी शास्त्र के अनुरुप समाज के अनुकूल ढालिये तभी आप विश्व गुरु बन पाएंगे। इस विश्वविद्यालय को डिजिटल करके ही अपने शास्त्र के ज्ञान राशि को विश्व स्तर तक पहुँचा सकेंगे। डॉ राधाकृष्णन जी एक सफल शिक्षक,दार्शनिक और राजनेता थे। वे भारत की उस परम्परा के वाहक थे जिन्होने पश्चिम के दार्शनिक आधिपत्य को चुनौती दी।वे शिक्षको के लिये एक प्रेरणा स्रोत है। भारतीय परम्परा मे शिक्षक केवल शास्त्र ज्ञान ही नहीं देता था बल्कि गुरुकुल में छात्र के चरित्र का निर्माण भी करता था। कुलपति प्रो त्रिपाठी ने कहा कि आज आवश्यक है की शिक्षक को जिस कार्य के लिये वेतन मिलता है उसे पूरी ईमानदारी एवं निष्ठा से करे।किसी भी राष्ट्र की प्रगति में शिक्षा और शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह विश्वविद्यालय भारतवर्ष के तपस्वियों एवं साधको की भूमि है। यहां का शिक्षक पूरे विश्व को सन्देश देता है या विश्व शिक्षा का वाहक है।
कार्यक्रम का आरम्भ वैदिक मंगलाचरण प्रो० महेंद्र पान्डेय और पौराणिक मंगलाचरण डॉ० ज्ञानेन्द्र सांपकोटा ने किया तथा मंचस्थ अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती और डॉ राधाकृष्णन जी के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ।मंचस्थ अतिथियों का स्वागत प्रो रामकिशोर त्रिपाठी तथा धन्यवाद डॉ रविशंकर पान्डेय ने किया।संचालन अध्यापक परिषद के महामंत्री प्रो० शैलेश कुमार मिश्र ने किया।इस अवसर पर विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के ७५ शिक्षकों को अध्यापन एवं अन्य क्षेत्रों उत्कृष्ट कार्य करने के लिये सम्मानित किया गया।जिसमे मुख्यत,
सम्मानित होने वाले शिक्षक-
पद्म भूषण प्रो देवी प्रसाद,प्रो केसी दुबे,प्रो हरप्रसाद दिक्षित,प्रो दुर्गानन्दन त्रिपाठी,प्रो जितेन्द्र कुमार,प्रो राजनाथ,प्रो महेंद्र पान्डेय,डॉ विद्या चंद्रा,डॉ विजय शर्मा,डॉ दिव्यचेतन ब्रह्मचारी,डॉ राजा पाठक,डॉ मधुसूदन मिश्र,डॉ सांपकोटा,डॉ गणेश दत्त शास्त्री,डॉ क्षमा मिश्रा,डॉ ओमप्रकाश मिश्र,डॉ विनोद गुप्ता आदि को सम्मान पत्र, अँगवस्त्रम और नरिकेल दे कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम मे उस दौरान प्रो देवी प्रसाद,प्रो गणेश दत्त शास्त्री ने अपने विचार व्यक्त किये। उक्त अवसर पर कुलसचिव डॉ ओमप्रकाश, प्रो रामपूजन पान्डेय,प्रो सुधाकर मिश्र प्रो हीरककान्ति चक्रवर्ती, प्रो हरप्रसाद दीक्षित,डॉ विजय पान्डेय,डॉ दिनेश कुमार गर्ग सहित अनेक अध्यापक उपस्थित थे।

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