सत्य की खोज ( भाग - 1)
सभी प्रिय बहन भाइयों को मेरी राम-राम। आज का दिन आप सभी के लिए आनंदमय व मंगलमय हो।
हमारे ऋषियों ने हमारे जीवन को चार भागों में बांटा है।
प्रथम भाग - ब्रह्मचर्य आश्रम (1 वर्ष से 25 वर्ष तक) संयम व कठोर परिश्रम द्वारा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करना, जैसे शस्त्र व शास्त्रों के गहन अध्ययन द्वारा ज्ञान की प्राप्ति, बुद्धि व मेहनत से (छल- कपट से नहीं) धन कमाने का ज्ञान क्यूंकि धन बिना आप संसार में कुछ नहीं कर सकते , सेवा- भाव की प्रवृत्ति और शत्रुओं को मुंहतोड़ जवाब देने की क्षमता।
द्वितीय भाग - ग्रहस्थ आश्रम ( 26 वर्ष से 50 वर्ष तक ) संयम व व्यवहारिक ज्ञान द्वारा गृहस्थ जीवन का पालन, नहीं तो संसार नहीं चलेगा।
तृतीय भाग - वानप्रस्थ आश्रम ( 51 वर्ष से 75 वर्ष तक ) आज हम जो कुछ भी हैं, समाज के कारण ही है। माता-पिता ने हमें जन्म दिया और पाल-पोस कर बड़ा किया, गुरुओं ने ज्ञान एवं संस्कार दिए, समाज के अन्य लोगों ने जैसे किसी ने हमारे लिए मकान बनाया, किसी ने अन्न पैदा किया, किसी ने फल सब्जियां उगाई , किसी ने घी- दूध पिलाकर हमें स्वस्थ व सुंदर जीवन दिया इत्यादि। (माता-पिता व समाज का हमारे ऊपर ऋण है जिसे हमें वानप्रस्थ आश्रम में चुकाना है)।
चतुर्थ भाग - सन्यास आश्रम (76 वर्ष से 100 वर्ष तक) परमपिता परमात्मा की कृपा से हमारे जीवन के 75 वर्ष सुख और आनंद में बीत गए। अब समय है, हम उस परमपिता की शरण में चले जाएं जिसने हमें सब कुछ दिया है। अर्थात सब कुछ त्याग कर उसकी भक्ति में लीन हो जाएं ।
लॉटरी के रूप में पैसों का मिल जाना ही सब कुछ नहीं।
जिंदगी के किसी मोड़ पर अच्छे विचारों का मिल जाना भी लॉटरी से कम नहीं ।।
आपका अपना
मोतीलाल गुप्त
नोट -आपके अमूल्य विचारों का स्वागत है वे हमारे मार्गदर्शन सहायक होंगे।
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