सत्य की खोज (भाग- 2)
सभी बहन भाइयों को मेरी राम-राम। आज का दिन आप सभी को आनंदमय व मंगलमय हो।
हमारे ऋषि मुनियों ने काम के आधार पर (जन्म के आधार पर नहीं ) हमारे समाज को चार वर्णों अर्थात चार श्रेणियों में बांटा है।
प्रथम श्रेणी - ब्राह्मण। पढ़ने- पढ़ाने का काम करने वाले, ब्राह्मण कहलाए (जन्म से नहीं, कर्म से) जिनका काम ज्ञान प्राप्त करना व ज्ञान बांटना था। वे ही पाठशालाओं व मंदिरों के संचालक बने जहां ज्ञान दिया जाता था।
द्वितीय श्रेणी - क्षत्रिय। देश व धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले व दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले क्षत्रिय कहलाए और उनमें से अनेक वीरगति प्राप्त कर परमपिता परमात्मा के प्रिय बन गए।
तृतीय श्रेणी - वैश्य। समाज की सुख- सुविधा के लिए भिन्न-भिन्न स्थानों से सामान एकत्रित कर सेवा के रूप में उचित मूल्य पर समाज तक समान पहुंचाने वाले, वैश्य कहलाए ।
चतुर्थ श्रेणी - शुद्र। हाथ से काम करने वाले शुद्र कहलाए, जैसे सोने का काम करने वाला सुनार, लोहे का काम करने वाला लोहार, मिट्टी के बर्तन बनाने वाला कुम्हार, कपड़े सिलने वाला दर्जी, चमड़े का काम करने वाला चमार कहलाया (ये व्यवसाय थे जाती नहीं)।
ये लोग कठिन परिश्रम द्वारा समाज की दैनिक ज़रूरतो की पूर्ति किया करते थे, जिनके बिना समाज का अस्तित्व ही संभव नहीं था।
दुर्भाग्यवस, मुगल आक्रांताओं ने, अंग्रेजों ने और हमारे समाज के कुछ तथाकथित स्वार्थी बुद्धिजीवियों ने इस वर्ग को निम्न श्रेणी का दर्जा देकर, उनके व्यवसाय को जाति का नाम दे दिया है।
मैं, उनसे पूछना चाहता हूं - जिनके बिना समाज का अस्तित्व ही संभव नहीं था, वह नीच कैसे हुए? वे तो अभिनंदन के अधिकारी हैं, वे तो हमारे पूजनीय है और हमारे समाज शिरोमणि है ।
इसी प्रकार, मुगल काल के दौरान आज के वाल्मीकि समाज ने मैला उठाना स्वीकार किया, धर्म नहीं बदला। वे हमारे सबसे बड़े सेवक हैं। किस प्रकार मन- मारकर, अपने शरीर का बलिदान कर हमारे घर, मोहल्ले व शहर को स्वच्छ रखते हैं, और जरूरत पड़ने पर वे हमारे हिंदू समाज के रक्षक भी बन जाते हैं। मां- भारती के ऐसे सपूतों को हम सभीका बारम्बार अभिनंदन। हमारे समाज के इन वीर पुरषों की सदैव जय हो, जय हो, जय हो!
जीवन कभी अकेला चलना पड़े तो डरिए मत ।
क्योंकि शमशान, शिखर व सिंहासन पर आदमी अकेला ही जाता है, इसलिए यदि आप अकेले हैं तो स्वयं को सौभाग्यशाली समझो ।।
आपका अपना
मोतीलाल गुप्त
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