अंग्रेजी एक अभिशाप -2
पिछले लेख के क्रम में......
इसी प्रकार,सन 1992 में चीन के एक शहर इवू (yiwu) में मैंने अपना कार्यालय बनाया जिसे सन 2006 तक चलाया। प्रत्येक वर्ष दो बार एक-एक महीने के लिए खरीददारी के लिए मैं चीन जाया करता था। मेरे होटल के कमरे के आगे आर्डर लेने के लिए चीन के करोड़पतियों की रात के 2:00 बजे तक लंबी लाइन लगा करती थी। वहां किसी को भी अंग्रेजी नहीं आती थी - मालिक हो या उनके कर्मचारी, केवल अपने सचिव चैन थॉमसन की सहायता से ही बात किया करता था।
रेलवे स्टेशन हो,बैंक हो या अस्पताल हो, कहीं किसी को भी अंग्रेजी का एक शब्द बोलते नहीं सुना। एक बार मैं चीन के एक रेलवे स्टेशन पर फंस गया था (मेरा सचिव वहां नहीं पहुंच पाया था) ट्रेन से यात्रा करनी थी। बुकिंग ऑफिस से टिकट खरीदने का भरसक पर्यतन किया, परंतु टिकट नही खरीद पाया (क्योंकि वहा पर कोई भी अंग्रेजी नही जानता था)। निराश होकर मुझे अपने होटल वापस आना पड़ा। (चीन की उन्नति के अनेक कारणों में निज भाषा भी एक बड़ा कारण है)।
हम भारत के किसी भी शहर में जाएं, वहा पर बजार में चलते समय दुकानों पर लगे सूचनापट्ट (Signboard) केवल अंग्रेजी में ही दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि हम भारत में नहीं, न्यूयॉर्क और लंदन के बाजार में घूम रहे हैं।
मेरे आदरणीय अभिभावकों- इन शब्दों को ध्यान से पढ़ो,उनका मंथन करो। हम सभी हिंदू लॉर्ड मैकाले ( जिसका विवरण 18 सितंबर 2024 के लेख में विस्तार से दिया गया हैं ) के षड्यंत्र में पूरी तरह फंस चुके हैं। पढ़ाई का अर्थ है- साधारण ज्ञान अर्थाथ किसी भी विषय पर अपनी बात पूरी तरह कह सकना और दूसरों की बात समझ सकना। बेकार का ज्ञान जो हमारी पाठ्य पुस्तकों में भरा पड़ा है, उसका अधिकांश भाग हमारे जीवन में कभी काम ही नहीं आता (जिसे रट - रट कर हम पागल हो जाते हैं)।
मेरी माता श्री केवल पांच जमात पास थी, परंतु उनका साधारण ज्ञान मेरे से कहीं अधिक था। बचपन में वह मुझे एक-एक महीने तक खत्म न होने वाली लंबी कहानियां सुना कर सुलाया करती थी।
दिल्ली की सड़कों पर रेहड़ी लगा कर फल- सब्जी बेचते 16-17 वर्ष के हमारे मुस्लिम बच्चों को देखो! उनमें ज्यादातर बच्चे 2000 रुपए प्रतिदिन कमा लेते हैं (फल-सब्जी की मंडियों पर तो उन्होंने पूरी तरह कब्जा कर लिया है) और नाई के व्यसाय पर भी 90% से ज्यादा मुसलमानो का कब्जा हो चुका है। वे बाल काटने के नाम पर हमारे चेहरे को कार्टून में बदलकर दो-तीन सौ रुपए प्रति व्यक्ति ले रहे हैं। इस प्रकार 50-60 हजार रुपए महीना कमा रहे है, परंतु दूसरी ओर हमारे होनहार हिंदू बच्चे- बीए, एमए, इंजीनियरिंग की डिग्रियां प्राप्त करके भी 26 - 27 वर्ष की उम्र तक पागलों की तरह 20,000 रुपए की मासिक नौकरी ढूंढ रहे होते हैं।
(प्रिय अभिभावकों- हम अपने बच्चों की पढ़ाई पर जितना पैसा खर्च करते हैं, संभवत हमें उसका ब्याज भी नहीं मिलता। हमारे बच्चे मुफ्त में ही रात-दिन नौकरी के नाम पर अपने मालिकों की गुलामी कर रहे होते हैं)। जताने को बहुत कुछ है....... आप समझदार हैं, आप सभी कुछ जानते हैं।
क्या आपने कभी किसी चीनी को नौकरी करते देखा या सुना है? संभवत नहीं। केवल हमारे हिंदू भाई बहन ही सारी दुनिया में नौकरी के नाम पर दूसरों की गुलामी कर रहे हैं।
सोचने की जरूरत है, समझने की जरूरत है, वरना अंधकार सामने है।
मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मेरे प्रिय हिंदू भाई बहन सत्य को जानें, वास्तविकता को पहचाने और उचित कर्मो द्वारा अपने भविष्य की रक्षा करे। महाकवि भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ठीक ही कहा है -
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
शुभकामनाओं सहित आपका अपना
मोतीलाल गुप्त
नोट - आपके अमूल्य विचारों का स्वागत है वह हमारे मार्गदर्शन में सहायक होंगे।
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