स्वास्तिक चिन्ह का रहस्य

स्वास्तिक चिन्ह का रहस्य


स्वास्तिक चिन्ह का रहस्य भी अजीब है।
इतिहासकार अरनेस्ट मैके के अनुसार स्वास्तिक चिन्ह सबसे पहले एलम अर्थात आर्य पूर्व दक्षिण ईरान में मिलता है।स्वास्तिक चिन्ह वाले ठप्पे हड़प्पाई संस्कृति में और अलतीन टेपे में पाए गए हैं और उनका समय 2300-2000 ई.पू. है।
शाही टुम्प में स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग श्राद्ध वाले वर्तनो पर होता था और 1200 ई.पू. दक्षिण ताजिकिस्तान में जो कब्रगाह मिले हैं उनमें कब्र की जगह पर इस तरह की चिन्ह मिलता है।
दुसरे इतिहासकार ओरेल स्टाईन का मत है कि यह चिन्ह पहले पहल ब्लूचिस्तान स्थित शाही टुम्प की धुसरभांड वाली संस्कृति में मिलता है।
800 ई.पू. के आस पास यह चिन्ह घरेलू काम में उपयोग आने वाली मृदभांड पर चित्रीत मिलता है।
जर्मनी में स्वास्तिक चिन्ह का बहुत महत्व था,इस चिन्ह को आर्यत्व का प्रतिक मानते थे।
अडोल्फ हिटलर कहता था कि संसार के सभी जातियों में आर्य उतम है और सम्पूर्ण विश्व में आर्यो शासन होना चाहिए इसीलिए हिटलर ने विश्व युद्ध शुरू किया था।
1918 में हिटलर ने जो नाजी पार्टी बनाया था उसका चुनाव चिन्ह स्वास्तिक चिन्ह ही रखा था।
आज हम (हिन्दू समुदाय) के लोग
 स्वास्तिक चिन्ह को थार्मिक ग्रंथों में और पुजा स्थलों में देखते हैं और हम अपने घरों के दरवाजे के पास स्वास्तिक चिन्ह पर्व त्यौहार के अवसर पर लगाते है, यहां तक के इसके सफर पर आप अपना विचार बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।
मनोहर कुमार यादव
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष
समाजवादी पार्टी झारखण्ड।

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