देश के लिए जरूरी है इन सवालों का समाधान

देश के लिए जरूरी है इन सवालों का समाधान



    भारत एक समर्थ, सशक्त, शक्तिशाली और फिर विश्वगुरू राष्ट्र की भूमिका में हो, कम से कम लगभग नब्बे फीसदी भारतीयों का यही सपना है । जो बेहद सुखद स्थिति है । अब सवाल यह उठता है कि यह संभव होगा कैसे ? इसके लिए आइए हम बहुत आसान तरीके से देश की वास्तविक स्थिति को सोचने समझने का एक गंभीर प्रयास करते हैं । सभी इस तथ्य और सत्य को आसान और बेहतर तरीके से कुछ यूं समझ सकते हैं - मान लीजिए आपके संयुक्त परिवार के कुल सदस्यों की संख्या बीस से तीस लोगों की है, जो एक बड़े घर में रहते हैं । घर के अधिकांश लोग सुशिक्षित, संस्कारी, शांतिप्रिय और कामकाजी हैं, पर उसमें से सिर्फ दो या तीन लोग नशेड़ी, दुराचारी और अपराधी प्रवृत्ति के हैं, जो प्रतिदिन नशे की हालत में बेवजह हो हल्ला, उत्पात और अशांति बनाए रखते हैं । अपराधी प्रवृत्ति के हैं । उनकी वजह से हर दूसरे दिन ना सिर्फ भीतर बाहर के झगड़े होते हैं बल्कि पुलिस का आना-जाना होता है । सोचिए, उन दो तीन लोगों की वजह से उस घर की स्थिति, उसका माहौल कैसा रहता होगा ? सिर्फ दो या तीन लोगों की वजह से घर के अधिकांश लोगों की व्यवस्था और उनकी वास्तविक मानवीय क्षमता पर कैसा दुष्प्रभाव पड़ता होगा ? सच मानिए, ऐसे घर के भले लोग इस स्थिति से उबरने के लिए आज या तो स्वंय उन लोगों के विरुद्ध कठोर प्रशासनिक कार्रवाई का सहारा लेते हैं या फिर संपत्ति के बंटवारे का समाधान कर उनसे दूरी बना लेते हैं । ठीक उस एक घर की तरह ही आज इस देश की स्थिति है, महज कुछ लोगों की वजह से आए दिन पूरे देश में अशांति और भय का माहौल बन जाता है । अपराध होते हैं । इन कुछ लोगों की वजह से ही देश की सरकार का ध्यान अपने मुख्य कार्यों से भटकता है । जिससे विकास बाधित होता है । जिसका नुकसान पूरे देश और देश की जनता को भुगतना पड़ता है । क्या यह उचित है ? जवाब साफ है - नहीं । तो फिर इनसे निपटने का, इनकी मानसिकता वाली उस विषबेल को जड़ से खत्म करने का रास्ता क्या है ? देश के सामने आज यह एक बड़ा सवाल है ? एक देश के रूप में जब तक इन कुछ प्रश्नों का समुचित समाधान हम नहीं निकालेंगे, देश का माहौल स्थाई रूप से शांतिपूर्ण नहीं होगा । विकास कार्यो की गति बाधित होती रहेगी । हम अपनी मूल कमियों, कमजोरियों को दूर करने के प्रयास पर एकाग्रचित नहीं हो पाएंगे । हम अपने वास्तविक स्वर्णिम लक्ष्यों से दूर रहेंगे । अतः यह जरूरी है कि हम हर तरह के अपराध और उनके पीछे काम करने वाली अप्रत्यक्ष मानसिकता तक को खत्म करने का समुचित और सफल समाधान खोजें । उस पर पूरी सफलता से अमल भी करें । निःसंदेह अपराध के प्रति कठोर दंड का प्रावधान और उसकी कारगर व्यवस्था बनाना ही इसका सबसे बेहतर उपाय है । जन जागरूकता के सारे प्रयास इसके बाद अपराध मुक्त बनाए रखने के लिए ही किए जा सकते हैं, इससे प्राथमिक समाधान संभव नहीं है । प्रारंभ में ही इसकी बात सर्वथा गलत और एक छलावा है ।
वर्तमान समय में यदि हम पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता से देश के हालात और देश की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन करें तो यह बिल्कुल स्पष्ट रूप से सामने आता है कि हमारी वर्तमान केंद्र सरकार देश के विकास और उसके स्वर्णिम भविष्य के लिए हर संभव प्रयास कर रही है । योजनाएं बना रही है । उन पर काम भी कर रही है या करना चाहती है । बावजूद इसके परिणाम उतना बेहतर नहीं आ पा रहा, जितना आना चाहिए । कारण कुछ वैसी बाधाएँ हैं जिसका उपर जिक्र है, तो कुछ तकनीकी और मानवीय संसाधनों की कमी और त्रुटियाँ भी हैं, जिस पर गंभीरता से सोचने समझने और फिर उनके निपटारे के लिए काम करने की जरूरत है । दोनों ही क्षेत्र में आगे बढ़ने की, काम करने की जरूरत है । 
फिलहाल देश चीन से फैली कोरोना संक्रमण जैसी महामारी के साथ उसकी विस्तारवादी बदनीयति से उपजी युद्ध जैसी स्थिति से जूझ रहा है । पाकिस्तान के आतंकवाद और उसकी स्थाई शत्रुता की समस्या तो बहुत पहले से है । रही बात अंदरूनी समस्याओं की तो एक तरफ महाराष्ट्र में सुशांत सिंह की संदिग्ध मृत्यु के बाद वहां की राज्य सरकार, पुलिस और फिर बॉलिवुड प्रकरण वाले सामने आए पूरे घटनाक्रम से देश विचलित है तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड सहित कई राज्यों से आते महिला अपराध के केस व्यापक चिंतन और कार्रवाई की मांग करते हैं । महाराष्ट्र का सुशांत सिंह का मामला हो या फिर बॉलिवुड का, सीबीआई और एनसीबी की तेज जांच के बाद पिछले कुछ दिनों में आई उसकी गहन चुप्पी बहुत सारे संदेह उत्पन्न करती है । उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड का सच यह है कि चाहे किसी भी रूप में किसी ने अपराध किया हो, मामला जघन्य अपराध का है, जिसमें परिवार की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता । पुलिस समय पर और सही तरीके से काम क्यों नहीं कर पाई यह भी जांच का विषय है, पर इस प्रकरण में जो सबसे गलत बात हुई है, वह है इस कांड का आपराधिक राजनीतिकरण और टीआरपी तथा आपसी प्रतिस्पर्धा की दौड़ में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गलत रिपोर्टिंग । दोनों ही क्षेत्र के जिम्मेवार लोगों और संस्थाओं को इस पर विचार करने की जरूरत है । ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर जातीय और प्रचार प्रसार वाली अतिवादी नीति की अनुमति किसी को भी नहीं दी जा सकती ।
अंत में बात कश्मीर से सामने आए वहां के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला के देश विरोधी बयान की, तो सरकार को अब बिना विलंब किए ना सिर्फ उनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि जरूरी यह भी है कि अब देशद्रोह कानून को ज्यादा सख्त बनाते हुए ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि भविष्य में देश का कोई भी व्यक्ति या संस्था लोकतांत्रिक व्यवस्था, मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश के विरूद्ध कुछ भी कहने या करने का दुस्साहस ना कर सके ।
सीता राम शर्मा " चेतन "

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