मुक्त विश्वविद्यालय में राष्ट्रधर्म एवं राष्ट्रवाद पर व्याख्यान का आयोजन

मुक्त विश्वविद्यालय में राष्ट्रधर्म एवं राष्ट्रवाद

 पर व्याख्यान का आयोजन



प्रयागराज(राम आसरे)। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज में शनिवार को आयोजित आजादी के 75 वें अमृत महोत्सव के अवसर पर राष्ट्रधर्म एवं राष्ट्रवाद विषय पर व्याख्यान देते हुए मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति श्री रणविजय सिंह ने कहा कि हम विश्व गुरु तभी हो सकते हैं जब हमारे अंदर समता, समरसता और सरलता का भाव हो। सर्वे भवंतु सुखिन: को मानने एवं पालन करने वाले हम सभी अखिल ब्रह्मांड में व्याप्त हैं लेकिन वर्तमान दौर में अत्यधिक सतर्कता और सजगता की आवश्यकता है। राष्ट्रवाद का उदाहरण देते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने बताया कि सुभाष चंद्र बोस के एक आह्वान पर जनमानस अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर रहता था, यही राष्ट्रवाद है। उन्होंने कहा कि हमारा चिंतन समष्टिपरक है, इस कारण हम कभी भी विभेद कर ही नहीं सकते। हमारी संस्कृति में तो जीव के साथ-साथ प्राणी मात्र के कल्याण का भी विषय छुपा हुआ रहता है। जब हम विश्वकल्याण की बात करेंगे तो हमारा कल्याण स्वयं हो जाएगा। उन्होंने विश्वविद्यालय के शिक्षकों से अपील की कि वे अपने मस्तिष्क का उपयोग राष्ट्रवाद के लिए करें। विशिष्ट अतिथि प्रयागराज जोन के पुलिस महानिरीक्षक कविंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि किसी देश की पहचान उसके धर्म से ही होती है और बहुसंख्यक लोगों के आधार पर देश का धर्म बनता है। उन्होंने कहा कि हमें इस बात की खुशी है कि आजादी के 75 वें वर्ष पर आयोजित होने वाले अमृत महोत्सव में हम सभी शरीक हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब राष्ट्र में रहने वाले लोगों की मान्यताएं, धर्म, संस्थाएं इत्यादि एक सोच से प्रेरित होकर कार्य करने लगे तो वही राष्ट्रवाद है। उन्होंने कहा कि जब लोग गंभीरता से देश के कानून, परंपराएं एवं मान्यताओं को मानने लगते हैं तो इसे ही प्रखर राष्ट्रवाद कहा जाता है। लोग अपने अपने क्षेत्रों के मूल्यों का ईमानदारी से पालन करें तो इससे बढ़कर दूसरा राष्ट्रवाद नहीं हो सकता। हमारी पहचान इसलिए है कि हम सनातन हैं। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर कामेश्वर नाथ सिंह ने कहा कि भूख, भय और भ्रष्टाचार जब तक हमारे देश से मिटेगा नहीं तब तक हम सही मायने में स्वतंत्रता की कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने भारतीय और पश्चिमी विचारधारा में अंतर करते हुए बताया कि पश्चिम की विचारधारा नस्ल से प्रभावित है जबकि हमारी विचारधारा संस्कृति के प्रवाह से प्रभावित है। उन्होंने कहा कि सुख-दु:ख के सम्भाव से ही देश का धर्म बनता है और यही राष्ट्रवाद है। इससे पूर्व प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम संयोजक डॉ सत्यपाल तिवारी ने किया। कार्यक्रम के बारे में डॉ आनंदानंद त्रिपाठी ने जानकारी दी। संचालन डॉ सुरेंद्र कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ सतीश चंद जैसल ने किया । इसके उपरांत सामूहिक समरसता सह भोज का आयोजन किया गया।

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