आल्हा और अलहितमामा..

आल्हा और अलहितमामा..





डाॅ०रमाकांत क्षितिज

संकलन विनोद कुमार सीताराम दुबे शिक्षक भांडुप मुंबई महाराष्ट्र:  अस्सी के दशक तक गांवो में आल्हा गायन का बोल बाला था.आल्हा वीर रस का काव्य है.मेरे बचपन मे अमेठी और आस पास इसका खूब आयोजन होता.बड़ी भीड़ इकट्ठा होती.इसकी सबसे बडा खासियत यह थी, कि इसको प्रस्तुत करने का अपना अनोखा निराला अंदाज़ .तखत के ऊपर चार पाई रखकर ,उस पर बैठ कर तीन से चार लोगों की टोली यह गायन करती. आल्हा और ऊदल नाम के वीरो की यह गाथा है.यद्यपि की आल्हा ऊदल के इतिहास को लेकर एक राय नही है,जो भी हो मुझे लगता है,वीर रस की इससे अच्छी गायन के रूप में और कोई गाथा नही है .हमारे गांव में भी एक गायक रहते थे.जो हमारे रिश्तेदार भी थे.बहन के घर रहते थे.इसलिए वे पूरे इलाके के मामा थे.आल्हा गाना उनका पेशा था.तो हो गए अलहितमामा.असल नाम उनका शीतला मिश्र था. ढोल बजाने के कारण ,हमेशा वे अपना कन्धा हिलाते रहते ,मानो ढोल बजा रहे हो. मामा स्कूल नही गए थे,लेकिन आल्हा और पूजा पाठ में परांगत थे.लगभग चालीस किलोमीटर के आस पास गांव के नाम उन्हें याद थे .मुझे खूब स्नेह करते थे .एक बार मेरे गाँव के बगल गांव में आल्हा हो रहा था.एक प्रसंग में अलहित गाते है कि,जो पिता की हत्या का बदला न ले ले.उसका जीना व्यर्थ.उसी जगह दो लोग ऐसे भी मौजूद थे.जिनमे से एक ने दूसरे के दादा की ह्त्या की थी.हत्या हुई दादा के नाती उस आल्हा से इतना प्रभावित हुआ कि,घर जाकर तमंचा लाया.और अपने दादा के हत्यारे पर गोली चला दी थी.आल्हा आज अपनी पहचान खो रहा है. आल्हा ऊदल की जगह अमरेंद्र बाहुबली,कृष,ने ले ली है.थ्री डी के जमाने मे आल्हा लुप्त होने की कगार पर है. नई पीढ़ी तो बिल्कुल जानती भी न होगी..आल्हा बैरन चिट्ठी की तरह, एंड्रॉइड मोबाईल के ज़माने में कहा टिक पाएगा...

Post a Comment

0 Comments