पारसी पंचायत गाईडलाईन का पालन करते हुए शवों को जला रहे हैं :मनोहर यादव

पारसी पंचायत गाईडलाईन का पालन

 करते हुए शवों को जला रहे हैं :मनोहर यादव




पारसी समाज 3000 बरस अपने पुराने रीति रिवाज को भूल कर शवों को जलाना शुरू किया तो हिंदू धर्म के लोग सदियों पुरानी आपने दाह संस्कार की धार्मिक रीति रिवाज को भूल कर मजबूरी में गंगा में बहाने और बालू रेत में दफनाने का काम कर रहे हैं ।
ज्ञातव्य हो कि पारसी पंचायत ने भारत सरकार के कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए अब शवों को जला रहे हैं जबकि आज के पहले पारसी समाज शवों को न जलाते थे और न ही दफनाते थे क्योंकि पारसी समाज पृथ्वी अग्नि और जल को बहुत ही पवित्र मानते हैं। शवों को पारसी समाज एक उंचे टावर जिसे टावर ऑफ साइलेंस कहा जाता है।
प्रधानमंत्री जी गंगा के सफाई पर नमामि गंगे योजना के तहत 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजनाओं की स्वीकृति दो हजार अट्ठारह उन्नीस में ही दिया था ।
पिछले दिनों बिहार के बक्सर और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में गंगा नदी मे और गंगा नदी के किनारे बालू रेतों गाडे़ गए लाशो ने देश और दुनिया के मीडिया में सुर्खियों में जगह बनाया।
प्रधानमंत्री 14 मई को देश के साढे़ 9 करोड़ किसानों के लिए 19000 करोड रुपए किसान सम्मान निधि योजना के आठवीं किस्त जारी करते हुए देश के कई किसानों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बातें की 14 मई को प्रातः 11:00 बजे प्रधानमंत्री ने किसानों को संबोधित भी किया, किसानों के लिए जारी की गई कुल राशि में भ्रम की स्थिति है किसी समाचार माध्यम से यह बताया गया कि इस बार 18000 करोड़ रुपए किसान सम्मान निधि में जमा हुआ तो किसी ने 20000 करोड़ रूपए जारी करने की सूचना प्रचारित की लेकिन भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी विज्ञापन में बताया गया कि 19000 करोड़ रूपए जारी किए गए लेकिन यह बात अभी चर्चा का विषय नहीं है चर्चा का विषय गंगा में हजारों शवों को लावारिस अवस्था में फेंकने से पवित्र गंगा की प्रदूषित हो रही पवित्र जल के संबंध में है। प्रधानमंत्री जी किसानों को संबोधित करने के क्रम में जब उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला जोकि लाशों को बालू के रेतों में छुपाने के मामले में और गंगा में बहाने के मामले में देश और दुनिया के मीडिया में सुर्खियां बनी हुई थी तब उन्नाव जिले के ही सिकंदरपुर सरोगी ब्लॉक के गांव रौतापुर के किसान अरविंद निषाद से मुखातिब हुए करीब 4 मिनट की बातचीत में पीएम ने जैविक खेती के प्रति उनकी अभिरुचि को समझ कर उनकी सराहना की और उनकी उगाई मूंगफली को पॉलिथीन में पैक देख प्रधानमंत्री जी ने नमामि गंगे की मूल भावना की याद दिलाई और पॉलिथीन के बदले किसी अन्य थैले मे पैकिंग की सलाह दी। प्रधानमंत्री जी के मुख से मां गंगा की चर्चा सुनने के बाद मुझे लगा कि प्रधानमंत्री जी गंगा में फेंके गए लाशों पर भी दो चार शब्द कहेंगे क्योंकि पॉलिथीन से ज्यादा गंदा और दुर्गंध लाशों से होती है और वह भी उसी उन्नाव जिले में जहां के किसान से प्रधानमंत्री बात कर रहे थे। गंगा किनारे स्थित गांव रौतापुर गांव के किसान से बात कर रहे थे उसी रौतापुर गंगा घाट में दर्जनों लाशें गंगा में तैर रही थी और सैकड़ों लाशों को गंगा के बालू रेत में दफना दिए गए थे जिसे कुत्ते - कौवें और गीद्ध नोच नोच के खा रहे थे उसी रौतापुर गंगा घाट से 100 दो सौ मीटर की दूरी पर है शुक्लागंज गंगा घाट है यह शमशान घाट देश में सबसे बड़ा श्मशान घाट है जो पक्का का बना हुआ है और रौतापुर घाट कच्चा घाट है शुक्लागंज घाट और बक्सर घाट के बालू रेत में लगभग 900 लाशें दफन है घाट के कदम कदम पर मानव अंगे बिखरे पड़े हैं कुत्ते किसी लाश का हाथ नोच रहे थे तो किसी लाश का पैर ।
उन्नाव से सटे फतेहपुर में भी गंगा किनारे दर्जनों लाशें उत्तरा रही थी इसी तरह कन्नौज के गंगा घाटों पर 350 लाशें गाजीपुर के गंगा घाट पर 280 से अधिक लाशें कानपुर के गंगा घाट सुरेश्वर घाट पर 400 से अधिक लाशें कुत्ते नोच नोच कर खा रहे थे चारों तरफ वातावरण में दुर्गंध फैली थी उत्तर प्रदेश के कई जिले गंगा किनारे हैं और वहां भी ऐसी ही हालात है ।
मां गंगा आज शायद यही कह रही है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पुत्रों और अपनी सात पुत्रों को अपने में समाहित करने में जितना दर्द महसूस नहीं हुआ उससे ज्यादा आज निर्दयता पूर्वक फेंकी गई 1000 - 2000 लाशों से दर्द महसूस हो रहा है।
हे भोलेनाथ अब पुनः अपनी जटाओं में मुझे संमा ले ।
हिमालय से गंगा सागर तक गंगा 2525 किलोमीटर की सफर तय करती है उसमें सबसे अधिक क्षेत्र उत्तर प्रदेश का है उत्तर प्रदेश के 27 जिलों में 1140 किलोमीटर का सफर तय करती है और बिहार में प्रवेश करती है बलिया बनारस में भी गंगा मे लाशों की यही स्थिति है बिहार के बक्सर जिले में गंगा घाट में मिली सैकड़ों लाशें भी देश दुनिया मे सुर्खियां बन रही है। ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री जी समाचार माध्यमों में बनी इन सुर्खियों से वाकिफ नहीं होंगे लेकिन अनचाहे मुद्दों को नजरअंदाज करने की जो कला मोदी जी में है वह कला किसी अन्य राजनेता में नहीं है ।
गंगा में लाशों के निर्दयता पूर्वक फेंकने के कइ कारण हो सकते हैं पहला कोरोना से अत्यधिक मौतें होने के कारण राज्य सरकार अपनी नाकामी छिपाने के लिए शव को श्मशान घाट में जलाने नहीं दे रही है पिछले दिनों मीडिया कर्मी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई श्मशान घाटों से मृतकों का ब्यौरा एकत्रित किया और सरकारी आंकड़ों से मेल नहीं खाया शमशान कर्मियों द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र मे और सरकार द्वारा जारी कोरोना मृतकों की संख्या में भारी अंतर था।
दूसरा श्मशान घाटों में जलावन की लकड़ी ओ की भारी कमी को सरकार पूरा नहीं कर पा रही है और लाशों को श्मशान घाटों से लौटा दे रही है , तीसरा राज्य सरकार ने कोरोना मृतकों के दाह संस्कार के लिए कुछ धनराशि की घोषणा कर रखी है श्मशान घाटों में लाशों के जलाने में हो रही देरी के कारण लोग लाशों को छोड़कर चले जा रहे हैं और लकड़ी के कमी के कारण लाशों को नदी में बहा दिया जाता है चौथे कि गरीब परिवार बेहिसाब महंगी लकड़ी के कारण चुपचाप शव को गंगा में बहा दे रहे है और बालू रेत में कम गड्ढे में गाड़ कर जल्दी निकल लेते हैं ,पांचवा काशी के मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार होना सात जन्मों के पुण्य का परिणाम माना जाता है धार्मिक मान्यता है कि यहां पर अंतिम संस्कार पाने वालों को सीधे स्वर्ग में स्थान मिलता है यही वजह है कि दूरदराज से परिजन शवों को लेकर यहां आते हैं कुछ दिन पहले हालात इतने खराब हो गए थे कि आसपास के घाटों पर शवों की लंबी कतारें लग गई थी लोग दाह संस्कार करने वाले कर्मियों से आग्रह कर रहे थे कि बस हमारे प्रिय जनों की देह को अपनी सुपुर्दगी में ले लीजिए हम जाते हैं आपको जब सुविधा हो इन्हें संस्कार पूर्वक अग्नि के हवाले कर दीजिएगा राज्य सरकार के लापरवाही और अव्यवस्था के कारण कई लोग अपने प्रिय जनों के शव को खुद स्वयं भी दफनाने पर मजबूर हुए हैं गंगा के सफाई के लिए मोदी सरकार ने नमामि गंगे योजना चलाई जिस पर मोदी सरकार ₹20 हजार करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

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