एक दलित महिला ऊंची जाति की महिला से 15 साल कम क्यों जीती है?

एक दलित महिला ऊंची जाति की महिला

 से 15 साल कम क्यों जीती है?




मनोहर यादव


एक धनी परिवार की 7 वर्षीय बेटी से परीक्षा में गरीबी पर लेख लिखने को कहा गया उसने लिखा एक गरीब आदमी था, वह इतना गरीब था की उसका घर भी गरीब था, उसका ड्राइवर भी गरीब था और उसका माली भी गरीब था ।

भारत में 73 साल आजादी के बीत गए लेकिन गरीब- अमीर की खाई और चौड़ी होती जा रही है ऐसा लगता है की एक साजिश के तहत देश के दबे कुचले गरीब लोगों को फिर से गुलाम बनाने की गहरी साजिश चल रही हैऔर उनका शारिरिक एवं मानसिक विकास को रोक दिया गया है।

अभी जो बजट 2022 - 23 के लिए केंद्र सरकार ने जो बजट पेश किया है वह देश में इन्फ्राट्रक्चर विकसित करने वाला बजट अमीरों के प्रति समर्पित है और यह निरलजता से प्रमाणित करने की कोशिश किया जा रहा है की 25 वर्षों में देश का भविष्य सुधर जाएगा, तो जनता का भी भविष्य सुधरेगा लेकिन वस्तुस्थिति सबके सामने है। भारत में प्रजा का शासन है जिसे संविधान हम भारत के लोग का नाम देता है इसमें पहचान आर्थिक स्थिति या रंग- जाति या धर्म को लेकर कोई भेद नहीं है फिर भी इतने समय बाद भी एक दलित महिला एक उच्च जाति की महिला की तुलना में अपने जीवन में 15 साल कम जीवित रहती है कारन है गरीबी और कुपोषण ।कल्याणकारी राज्य जिसकी कल्पना आजादी मिलते वक्त की गई थी और उस अवधारणा के तहत 17 बार जनता ने सरकार चुनी है क्या इतनी भी सुनिश्चित नहीं कर सकती की सात दशकों मे कम से कम कुपोषण दूर किया जा सके?

उनके बच्चों में जन्म के 5 साल में मरने , नाटे या दुबले होने की संख्या भी उच्च जाति के बच्चों के मुकाबले ज्यादा होती है, इन सब का कारण एक ही है कुपोषण। जीवन में उनकी उत्पादकता भी कम होती है लिहाजा आय में भी कमी यानी हर आयाम पर पूरी जिंदगी वे गरीब या अभावग्रस्त ही रहते हैं ।

भारत में स्वास्थ्य पर खर्च बजट का मात्र 3:5 प्रतिशत होता है जबकि ब्राजील में 9:5 प्रतिशत दक्षिण अफ्रीका में 8 .25% और चीन में सारे 5 35% ।

अगर इतने लंबे समय में हम एक समाज की मौलिक जरूरतें पुरी नही कर सके तो प्रजा का तन्त्र कैसे हुआ ? हा अगर जनता अशिक्षित है तो उसे भ्रमित करना आसान होगा और मुफ्त का राशन उसे यथास्थितिवादी बनाता रहेगा।

भारत का कुल आबादी का 14% आबादी कुपोषित है 5 वर्ष से कम आयु वाले 35% बच्चे कुपोषित हैं जो सामान्य जाति के बच्चों से कद काठी में काफी कम होते हैं।

भूख के वैश्विक सूचकांक में भारत जहां 2020 में 107 देशों में 94 वें स्थान पर था वहीं 2021 में फिसल कर 116 देशों की सूची में 101 स्थान पर जा पहुंचा जबकि भारत के पड़ोसी जिसके बारे में हमारे देश के एक खास राजनीतिक वर्ग भूखा और नंगा बताते रहता है वह भी हमसे भुखमरी और कुपोषण के मामले में बेहतर स्थिति में है श्रीलंका 64वें नेपाल 73वें बांग्लादेश 75 वे और पाकिस्तान 88 वें स्थान पर है।

यूनिसेफ के रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुल आबादी के 50% से अधिक बच्चे कुपोषित हैं लेकिन हमें इन सारी चीजों को भूल जाने के लिए धार्मिक उन्माद की चासनी थमा दी जाती है और हम उस धार्मिक उन्माद के चासनी चाट कर ही मंत्रमुग्ध हो जाते हैं ।

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